________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अथवा अविद्या जाननी अरु चेतन विवतोपादान का. रण है एसा जानना। विश्वामित्र कर्दमादि सिद्धोंकी सृष्टिबिंबो ते विनाही प्रतिबिंबरूप दर्शाई है ॥
११॥ शिष्य उवाच- हे भगवन् दूसरे अविद्या पक्षविषे स्वप्न का अधिष्ठान ब्रह्म चेतन सिद्ध होता रै कल्पितकी निवृत्ति अधिष्ठानके ज्ञानते दोनी चाहीये यांते निद्रावाले ब्रह्मज्ञानसे रहित पुरुषको जाग्रतकालविषे स्वप्नकी निवृत्ति नहींहोनीचाहीये. विना ब्रह्मज्ञानसे स्वप्नके उपादानकारण जा अविद्या है तिसके विद्यमान होनेते और एक चतनको जाग्रत् स्वप्न दोनोका अधिष्ठान होनेते विवर्तउपादानकारणता है तथा अविद्याको दोनो जाग्रत् स्वप्नके प्रति परिणामी उपादानकारणपणा है जब. एसे भया तो इस जाग्रत्को व्यवहारिकसत्तावाला स्वप्नको प्रातिभासिकसत्तावाला होनेमे कौन हेतु है।
१२ । श्रीगुरुरुवाच-हे ऋषे प्रथम शंकाका उत्तर तो यह है. यद्यपि ब्रह्मज्ञानविना अविद्याके सद्भावसे स्वप्नकी अत्यंत निवृत्ति नहींहोती तथापि निद्रादोषका अभाव तथा जाग्रत् कर्मोके उद्भव इन दोनो निमित्तकारणते अविद्योपादानकारणमे स्वप्न की लयरूप निवृत्ति होवे है सो जानना. और हे शिष्य द्वितीय शंकाका यह समाधान है,
For Private and Personal Use Only