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३ ॥ अरु जिससे मन निर्विषय हुवा शांति पावे है तिस शम गुणका नित्य सेवन करता है. तथा जिस पूर्वोक्त ब्रह्मलोकादिकोंमे दोषदृष्टि से सर्वइंद्रियों को स्वाधीन रखता है, तथा जो खल्पाहारसें, ब्रह्मचर्य से शांतात्मा जितेन्द्रियवान् पुरुष है, सो दम गुणवान् कया जाता है. सोई महात्मा जब शरीर करके विषयोंका त्यागकर संन्यासी होता है, सो उपरति गुणसे विभूषित होता है. सर्व निवृति होने के कारण ब्रह्मानंदमे सर्वदा मग्न रहता है.
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एवं सोई पुरुष मानापमान शीतोष्णादिकों का जब सहन करता है तब तितिक्षु नामसे प्रसिद्ध होता है; तथा वह विद्वान् जब सच्चिदानंदमे सामान्यरीतिसें रहिनेका प्रेम रखता है तब सो समाधानवाला सर्वदा सुखी मनुष्यजानना. और जो मुनि “ तत्वमसि " महावाक्योंमे सर्वदा विश्वासपूर्वक संलग्न है सो श्रद्धालु जानना ॥ पुनः जो विवेकी सुजन पुरुष वस्त्रों वह्निस्पर्शवाले समान जलकी ईच्छावत् विश्वाग्निसे निवृत्तिलिये ब्रह्मानंदजलकी इच्छाविना त्रिलोककों भी नही चाहता सो अधिकारी जानो आगेरंतिदेव राजाकी कथाको तुम श्रवणकरो. * ॥ इतिश्री द्वादश कमलं समाप्तं हरि ॐ तत्सत् ॥
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