________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(२३) रज्जु मात्र ज्ञानसे कैसे कल्पित सर्पकी निवृति होवेगी।
६॥ श्री गुरुरुवाच हे शिष्य जहां रज्जु आदिक जड पदार्थोका ज्ञान अंतःकरणकी वृतिरूप होता है तहां वृत्तिका प्रयोजन केवल आवरणको भंग करना इतने मात्रही होता है, सो आवरण केवल जडके आश्रित नही रहिता किंतु जडका अधिष्ठान जो चेतन है तिलकेही आश्रित रहिता है. याते तिसवृत्तिने रज्जुवाले चेतनका ही आवरण भंग कीया जाता है और वृत्तिमे जो आभास है सो रज्जुको प्रकाशता है अरु चेतन स्वयं प्रकाशमान अपने प्रकाशसेही प्रकाशता है याते वृत्ति ज्ञानका विषय अधिष्ठान सहित रज्ज है केवल रज्जुमात्र विषय नहीं है तिस कारणते सर्वत्र अंतःकरणजन्य वृत्ति ज्ञानका विषय ब्रह्मदी होता है याते रज्जुका जो ज्ञान है सोईही मिथ्या सर्पके अधिष्ठान रज्जु उपहित चेतनका ज्ञान होनेते कल्पित सर्पकी निवृत्ति होनी चाहिये ।
७॥ शिष्य उवाच--भो कृपानाथ आपके वाक्यानुसार सर्पको निवृत्ति सिद्ध भई तथापि सपके ज्ञानकी निवृत्ति तो नही होती तिस ज्ञानका अधिष्ठान जो वृत्तिवाला साक्षी है तिसके ज्ञानका अभाव होनेते कैसे निवृत्ति होवे ॥
For Private and Personal Use Only