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॥ श्रीगुरुरुवाच-दे सोच जब विषय होता है तबही ज्ञान होता है जब विषयका अभाव होवे तो तिसके ज्ञानकामी अभाव होजाता है, यह नियम जानना. जब रज्जतानसे सर्पका अभाव भया तब सर्पज्ञानभी स्वयं नष्ट होजाता है. जैसे काष्ट विषयके अभाव होनेसे अग्निकाभी स्वयं नाश होता है तैसे सर्पज्ञाननाश होवे है ॥
॥ शिष्य उवाच॥ हे देव तौभी सर्पके ज्ञानको कल्पित होनेते अधिष्ठानके ज्ञानविना निवृत्ति कैसे मानीपे यह संशय नही निवृत्त होता ॥ ॥श्रीगुरुरुवाच उपायका उपायांतरभीनिर्दोषहोताहै इस न्यायसे यहउतरभीग्रहणयोग्यहै निवृत्ति दो प्रकारकी होती है एक अत्यंत निवृत्ति होती है दूसरी कार्यकी कारणमे लयरूप निवृत्ति होती है. जा अत्यंत निवृत्ति है सा कारणअजान सहित कार्यकी निवृत्तिरूप है सा निवृत्ति तो अधिष्ठानज्ञान विना होती नहीं परंतु लयरूप निवृत्ति तो अधिष्ठान ज्ञानविना भी होती है जैसे कि विनाज्ञान भूषणोंका कनकमे लय सुषुप्तिमे वा प्रलयम पदार्थोंका अज्ञान विषे लय होवे है सो ज्ञानविना कर्मके अभावरूप निमि. त्तसे होवे है तैसे ज्ञानविना सर्पाभावरूप निमित्तते सर्पके ज्ञामकीभी निवृत्तिहोवे है ॥
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