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यांते अधिष्ठीनोंकाभेद अवश्य मानना चाहीये तो फिर साक्षीको अज्ञातहोनेसें सर्पज्ञान न मिटेगा यांते रज्जुज्ञानसे सर्पके ज्ञानकी निवृत्ति तो कैसेभी नही बन सकती अधिष्ठानका भेद होनेते.इसका समाधानकहो।
१०॥ श्रीगुरुरुवाच हे विद्वान जब मंद अंधकारमे अंतःकरणकी वृत्ति नेत्रसे निकसकर रज्जुके समानाकार होती है तब इदं आकारवाली जा अंतः करणकी वृत्ति है तिलनिवाले चेतनमे अविद्याही तमोगुणसे सर्पाकार और सत्वगुणसे सर्पके ज्ञानाकार रूपको धारण करे है इसकारण सर्प अरु सर्पके ज्ञानका उपादानकारण तो एक अविद्याही है अरु चेतनको अधिष्ठान होनेते विवोपादान कारणता है यांते रज्जु प्रदेशमे जो रज्जुवाला चेतन है सोई वृत्तिवाला चेतन है वही सर्पका तथा सर्पज्ञानका अधिष्ठान है तिसकारणते रज्जुज्ञानसे सर्प तथा सर्पज्ञानकी निवृत्ति निर्विघ्न होइ सके है ॥
११॥ और जहां एकही रज्जुमे दश पुरुषोंकों किसको सर्प, किसको दंड, माला भूरेखा जलधारा, भिन्नभिन्न दृष्टिगोचर होवे है अथवा सर्वपुरुषोंको सर्पज्ञानही होवे है तहां जिसको रज्जुका ज्ञानहोवे है तिसकाही सर्प तथा सर्पकाज्ञान निवृत्त होवे है सर्वके श्नांतिजन्य पदार्थ निवृत्त नहीहोते
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