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७ ॥ शिष्य उवाच - हे गुरो स्वप्नावस्थाविषेभी पुष्कल देशकाल देख परता है. तिसदेशकाल निमितते स्वप्नसृष्टि उत्पन्न होवे है यांते यथार्थ है इसभी विवेकीकों कोई संदेह होता है ? इसकाभी उत्तर आपको यांते जाग्रत्भी स्वप्नसमान सत्य है मिथ्या नही है यांते वेदांतसे अद्वैतकी सिधि कैसे बन सकती है सो तो कहो ।
॥ श्रीगुरुरुवाच - जे पदार्थ साथही उत्पन्न होते है ते परस्पर कार्यकारण नही होते जैसे साथमे उत्पन्न भये जे दोभ्राता ते क्या परस्पर पितापुत्र हो सकते है ? तैसेही स्वप्नमेभी देशकाल और पदार्थ जे नदी, पर्वत, समुद्रादिक देखने मे आवते है ते इकठे उत्पन्न होनेते परस्पर कार्यकारण नही दोसकने || कारण तिसको कहते है जो प्रथम होवे. और कार्य तिसको कहते है जो पश्चात् होवे. और स्वप्नविषे साथ मे सर्व देशकाल पदार्थ उत्पन्न दोनेसें Face देशका कारणनही. यांते स्वप्न पदार्थ विनाकारण उत्पन्न होनेते मिथ्या है तैसे जाग्रत्भी मिथ्या है एसे आपको निश्चय करना चाहीये ॥
८ और देखो जो स्वप्नविषे पिता माता पुत्र पौत्रादिक तत्क्षण उत्पन्न होइ करकेभी बहुतकालके ये पितादिक है एसे तिनोंमे प्रत्यभिज्ञा ज्ञान होता है.
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