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जब एसे कोइभी किसीसे स्वप्नवार्ता जाप्र. त्में पूछता नहीं यांते स्वप्न मिथ्या है और स्वप्न काल रात्रिवि काशीमे शयन करे है अपनेको हरिद्वारमे मध्यान्दविषे पादोसें गमन हाथमे मिष्टान्न मुखसे मित्रसाथ संभाषण करता अपने को स्वप्नमे देखे है यांतभी मिथ्या है वसिष्ठजी कहते है स्वप्नमे मुहूर्तमात्रविषे शतसंवत्सर अनु. भव करते है यांते स्वप्न सत्यनही ॥
६॥ शिष्य उवाच-हे प्रभो जैसे स्वप्नपदार्थ उत्पतिवाले तथा नेत्रोंके विषय है तो भी मिथ्या है तैसे जाग्रत् पदार्थ भी मिथ्या है जो एमे मानो नो जाग्रत् पदार्थ भी उत्पत्तीवाला होनेते जैसे सत्य हे तिस दृष्टांतसे स्वप्नपदार्थभी उत्पतिवालाहोने से सत्यक्योंनहोवे तिनोंको क्योंमिथ्या कहते हो ।
॥ श्रीगुरुरुवाच हे सुबुद्धे जे पदार्थ कारणसे विना उत्पन्न होते है ते ख पुष्प समान असतही जानना यांते स्वप्नमे जे नदी, समुद्र, पर्वताविक देखनेमे आवते है तिनोके कारण योग्य देशकालके अभाव होनेते ते मिथ्या है इस अर्थमे किसी विचा. रशीलको कोई संशय होई सकता है इसका तुमही उसर कहो॥
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