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३ ।। और जो आपने कहा स्वप्नमे स्मृति होती है सो कहना मिथ्या है काइते जो यह रथ है, यह घोडा है, यह मार्ग है. एसा प्रत्यक्ष ज्ञान होता है श्रुतिमेभी कहा है रथ, घोडा मार्ग जाग्र. तवाले तहां नही किंतु नवीन रथादिकोंकों उत्पन्न करके स्वयंही देखे है कादेते स्मृतिके विषय परोक्ष पदार्थही होते है. अपरोक्ष विषे स्मृतिज्ञान होताही नहीं, ये मेरी माता, यह मेरा भ्राता पिता इत्यादि सर्व प्रत्यक्ष ज्ञानहोता है यांते मिथ्या प्रत्यक्षज्ञान है तिस दृष्टांतसे जाग्रतपदार्थ मिथ्या जानने ॥
४॥शिष्य उवाच हे देव स्वप्नकालमे इस देहसे लिंगशरीर निकलकरसत्यजाग्रत्पदार्थोको देखनेजाता है यांते ते पदार्थ जाग्रतके होनेते सत्य होनेचाहीये॥
॥श्री गुरुरुवाच हे शिष्य जो लिंगदेह निकले तोस्थूलका मरण होय जावे यातेस्थूलसे लिंगका बाहर जाता नहीं बनता. क्यों जो सर्व पुरुष स्वप्नवालेका स्थूलदेह प्राणवाला देखते है विनाप्राण लिंगदेहका गमनही नही बनता यांतभी स्वप्न मिथ्या होनेते तिस दृष्टांतसें भी जाग्रत पदार्थ मिथ्या है सत्यनही ॥
५॥ लिंगदेह बाहरदेखने जाताहोवे तो सर्वलोक प्रतिदिन स्वप्नसमागमकी वार्ता क्यों नहीं करते. जो तेरा मेरा एसे एसे स्वप्नमे व्यवहार होता भया ।
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