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(३९)
श्रीगुरुरुवाच दे मुने जो आपने कहा जाग्रत व्यवहारिक और स्वप्न प्रातिभासिक होनेते एकरूप नही सो कहना अनुचित है. काहेते स्वप्न पदार्थ अग्निजलादि स्वप्नकालमे शीतोष्णका कर्ता होनेसे स्वकालमे व्यवहार साधक होनेते भिन्न सत्तावाले नही तहां प्रमाण ( स्वकाले सद्भाति ) स्वकालमे जाग्रत्समान स्वप्नपदार्थ भी सत्य भासते है. यांतें दोनो एक सत्तावाले है यही दृष्टि सृष्टि वाद जानो २||और जो आपने कहा स्वप्रमे जाग्रत् के सत्य पदा
का स्मृतिज्ञानभी सत्य है तिस दृष्टांत से जाग्रत् पदार्थ सत्य होने चाहीये सो यह आपका कहना अयोग्य है एसे मानोगे तो अन्योन्याश्रय दूषण होता है. काते जो सत्यस्मृति ज्ञानको सत्यजाग्रत् पदार्थों की अपेक्षा होवे है अरु जाग्रत्के पदार्थों के सत्यत्ववास्ते स्मृतिके सत्यताकी अपेक्षा होवे है यांत दोनो मिथ्या है ॥
और जो आपने कहा है जाग्रतमे ज्ञातपदार्थ होवे तो तिनकी स्मृति होवे हे अज्ञातकी नही सो एसे नही है जो मूढमति है तो अवियासे क्या नहीं देख सकता स्वप्न में आकाशकोभी खाता है काटा हुआ अपना शिरो अपने हाथमे देखे है एसे अज्ञात पदार्थमो देखता है ज्ञात पदार्थो हो का देखना नही होता ॥
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