________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जो प्रत्यभिज्ञा ज्ञानके विषय नहीं होते तो सर्व स्वप्नविषे सर्वजनोने सर्वजनोंसे प्रश्न करना चाहीये जो तुम कवन है हूं कौन हूं यह गृह किसका है जैसे अनिरुद्धने उषासे, तथा अर्जुनने उलोपीसें पूछा है तुम कौनहो यह किसका गृह है मैं यहां कैसे आया यांते जब कोईभी किसीसे स्वप्नमे नही प्रश्न करता तांते स्वप्नपदार्थ संपूर्ण प्रत्यभिज्ञा ज्ञानका विषय हुए अविद्याके रचेला प्रतीत दोवे है, तिनोविषेभी जेस्वप्नमे पुत्र पौत्रादिक है तिनोंमे कार्यता देखता है, पिता, पितामहविषे कारणता और अपनेमे कार्यता कारणता दोनोंकों अविद्याके महात्म्यसे देखे हे तैसेही जब प्रबुद्ध भया तबभी तरक्षण उत्पन्न हुए जाग्रत प्रपंचमे नाना पिता पुत्रादिकोकुं अनुभव करेहै अरु प्राचीन जाने है और पूछता नही तुम कौन हो मैं कैसे आया यह ग्रह किसका है ते सर्व स्वप्नसमान मिथ्या है एसे निश्चय करके सत्यजो दोनोका ज्ञाता है सो मेहूं एसे जानो जैसे दर्पणमे मिथ्याही प्रतिबिंब प्रतीति होते है तैसे जाग्रत्केभी पदार्थ हैनही तौभी चिदानंदा. स्मामे प्रतिबिंबित हूए भासते है ॥
९॥ शिष्य उवाच-हे नाथ, जे पदार्थ व्यवहारके योग्य होते है. ते ही दर्पणमे प्रतिबिंबित होतेहै
For Private and Personal Use Only