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तिस कारणते वृत्यविच्छिन्न चेतनही अधिष्ठान है यह अनुभवसे सिद्धहोता है रज्जुवाला चेतन अधिष्ठान नहीबनता जो रज्जुवाला चेतन अधिष्ठान मानो तो जे दशपदार्थ सर्वकों प्रतीतहोते है ते एकएककोभी दश पदार्थ प्रतीतहोने चाहीये एसे तो होतानही यांते वृत्यविच्छिन्न चेतनही मिथ्यावस्तु तथा तिनाके ज्ञान इन दोनोका अधिष्ठान है यांते जो रज्जुकाज्ञान है सोई वृत्तिवालेचेतनका ज्ञान है तिसके ज्ञानसे सर्पकी तथासर्पके ज्ञानकी निवृत्ति होती है । यामे कोई संदेह नहीं है ॥
१२ ॥ तैसेही स्वप्नमे जो वृत्तिवाला चेतन है सोई स्वप्नके पदार्थोंका तथा तिनोके ज्ञानोका अधि
जन है जिसको जाग्रतके स्थूल देहका ज्ञानहावे है तिसकाही स्वप्न निवृत्त होवे हे सर्वजनोका निवृत्त कबीनहींहोता यह भ्रांतिज्ञान रज्जुमे सर्परूप होवे अथवा स्वप्नरूपहोवे सो सत् असत्से विलक्षण होनेते अनिर्वचनीय है तिलअनिर्वचनीय पदार्थका जो भान अस्कथन है तिसका नाम अनिर्वचनीय ख्याति कहीजाती है ॥
शिष्य उवाच हे समर्थ सर्ववेदांतोमे एसाही श्रवणमे आके है जो अधिष्ठानके ज्ञानते कल्पित वस्तुकी निवृत्तिहोती है।
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