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तिसते मैंब्राह्मणहुँ इस कल्पित ब्राह्मणपनैकी निवृ. त्ति होतीनही अरु मै ब्रह्म सच्चिदानंदैकरूप हुं यह विशेषवाचकहोनेसे अधिष्ठान नामवाला होनेते ति. सके ज्ञानते कल्पितकी, निवृत्ति होवे है ॥
१५॥ शिष्य उवाच हे भगवन् यह है एसापद सामान्यका वाचक है रज्ज है एसापद विशेषका वाचक है जो सामान्य है सो आधार है जो विशेष है सो अधिष्ठान है तिन आधार अरु अधिष्ठान इन दोनोसे भिन्न जैसे द्रष्टा होता है तैसे दाष्टीतक. मे अस्तिपणा सामान्य होनेते आधार है अरु मै ब्रह्म सच्चिदानंदहं यह विशेषहोनेते जगत्का अधिष्ठान है अरु दोनोसे भिन्न दृष्टा कवन है सो कहो।
१६॥ श्रीगुरुरुवाच है शिष्य जहां जडअधि. ष्ठान रज्जुआदिक है तहां द्रष्टादूसरा होता है परंतु जहां चेनत अधिष्ठान होता है स्वप्नवत् वहां आ. धार अधिष्ठानसे भिन्न द्रष्टा नही चाहीये, काहते. तहां जो एकही आधार अरु अधिष्ठान है सोईही द्रष्टा होता है तिसते भिन्न द्रष्टा नहीहोता है. सिद्धांतमे आपकी शंकाही नहीबनती कारणजो रज्जुमें सर्प अथवा स्वप्न सर्व कल्पित होनेते साक्षी आश्रित जाअविद्या है तितका तमोगुण जो है सो विश्याकार धारे दे, सत्वगुण ज्ञानाकार धारे है.
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