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(३३) परंतु आधारज्ञानते कल्पित वस्तुकी निवृत्ति होती है एसे क्यों नही देखनमे आवता इससे संदेह होता है. जो अधिष्ठान तथा आधार यह दोनो शब्द भिन्न भिन्न है वा एकार्थका ज्ञापक है भिन्न कहो तो तिनोकाभेद सुनावनाचा. हीये एककहो तो आधारज्ञानते कटिपतकी निवृत्ति होती है एसा लेख क्यों नहीदेखनेमे आवता सोकदो।
१३ ॥ श्रीगुरुभवाच हे प्रिय जैसे यह रज्जु है है यहां दो पद है “यह अरु रज्जु” तिसमे यह पदतो सामान्य वाचक है जो सर्पके साथभी रहता है जैसे कि यहस है यहां कल्पित सर्प साश्रमी यह मिलनेते सामान्य होनेसे आधारपदवाचक यह एसा पद है तिसके ज्ञानते सर्पकानाश नहीं होता अरु रज्जु है एसा जो पद है सो विशेषका वाचक है रज्जु पदार्थ जो है सो विशेष है अरु अधिष्ठान है तिसके ज्ञानते कल्पित सर्पकी निवृत्ति दोनेते रज्जुपदार्थकोअधिष्ठानपद वाच्यता कही है यही आधार अधिष्ठान दोनोका भेद जानना ॥
१४॥ अब दाटीतमे दोनोका भेद श्रवणकरो "ब्रह्माहमस्मि तथा "ब्राह्मगोहमस्मि” यहां आस्म नाम हैपना सो सामान्यहोनेते कल्पित ब्राह्मणके साथमेंभी अस्तिपना रहा है यांत आधारवाचक है
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