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॥ॐ श्रीगणेशायनमः॥ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय॥ ॥अथ श्रीविज्ञानकमलाकरेऽनिर्वचनीय कांडं प्रारभ्यते ॥ मंगलाचरणमत्र यजुर्वेदस्य शांतिपाठ एवास्ति ॥ शुक्लयजुर्वेदे बृहदारण्यकेशोपनिषदोः शांतिपाठः।। ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते॥ पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥ॐ शांतिःशांतिः शांतिः ॐ शंनोमित्रः शंवरुणः शंनोभवत्वर्यमा शंनइंद्रो बृहस्पतिः शंनो विष्णुरुरुक्रमः नमो ब्रह्मणे नमस्ते वायो त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि त्वामेव प्रत्यक्षं ब्रह्म वदिष्यामि ऋतं वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु तद्वक्तारमवत्ववतुमामवतु वक्तारं। हरिः ॐ शांतिः ३ अर्थः।। ईश पूर्ण है जीव भी पूर्ण है ब्रह्मसे अभिन्न जीव भी पूर्ण प्रगट भया है पूर्ण इसजीवके लक्ष्यरूपको सो मैं हूं: एसे जानकर पूर्णही शेषस्वयं रदिजाता है. शांतित्रय अध्यात्म अधिभूत अधिदेव साप माशार्थ है ? अर्थः॥ मित्र वरुण अर्यमा इंद्र बृहस्पति विष्णु वामन मुजे सर्वसुख देवो । ब्रह्मकेताई नमस्कार दो हे वायो तेरे ताई नमस्कार हो आप साक्षात् ब्रह्म हो आपको ही साक्षात् ब्रह्म कहेंगे सत्य बोलेंगे सत्य ब्रह्मको ही जपेगे वह ब्रह्म मेरी श्रीगुरुकी रक्षा करे पुनः रक्षा करे। ॥ॐ सहनाववतु सह नौ भुनक्तु सद वीर्य करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु माविद्विषावहै॥ॐ शांतिः॥३॥
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