________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ५ )
२ || तत्काल एकशुद्र अतिथी आयपहुंचा. वो बोला हे महाराज मुजक्षुधातुरको भोजन देवो. तिसको भी सर्वव्यापी परमेश्वरजान नमस्र पूजन करके अर्धभाग स्वभोजन में समर्पण कीया. ५ जबी शूद्र प्रसन्नमन होय जाताभया तबी महाराज फिर भोजन करनेमे प्रवृत्ति करता ही है. तब एक बहु श्वानोकेसाथ अतिथिने दर्शनदीया ॥ ६ ॥
तिसकोभी श्वानोसमेत परमेश्वररूपजान नमस्कारादिको से आदरपूर्वक संपूर्ण भोजन समर्पणकीया. जब सो श्वानसमेतअतिथि गया ॥ ७॥ तब महाराजकेपास केवलजलमात्र शेषरहा. अरु पीनेका प्रारंभ करताही है तबतक तो एक चांडाल वेशधारी अतिथि आयपहुंचा अरु कदनेलगा हेमहाराज. मै अमंगलमूर्त्ति चांडालके तांई पानी देवो ॥ ८ ॥ न देवोगे तो ये मेरेप्राण गयाही जानो. तब महाराज रंतिदेवकी अपने क्षुधापिपासा दुःखकी व्यथा भूल गई. अरु पिपासापीडित चांडाल अतिथिकी व्यथासें दुःखी हुवा महाराज अमृतरूपी वचनासें तिसका सिंचन कीया ९
३॥ महाराज कहते है हमको अष्टसिद्धियों समेत मोक्षभी नही चाहीये हम चाहते है की प्राणीमात्रके दुःखको मै प्राप्तदोवों जिससे यदजीवमात्र निर्दुःखढुवा सुखसें जीवता रहै ॥१०॥
For Private and Personal Use Only