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(११)
जैसे वंध्या पुत्रादिकोंका भाननहींहोता तैसे जो सर्पभी असत्यहोता तो भासतानही तथा सर्व शून्य दोनेते तुम कहनोवालकाभी असत्यहोनेते तुम कथन करनेमे कैसे सामर्थ्य को धारते, यांते असत्ख्यातिका कथनभी असतहोनेते आनादरणीय है ॥
२ ॥ दूसरे बौद्ध जे योगाचार कहावते है. तिनके मतमे आत्मख्यातिका अगंकर है सो इस रीतिसे है. क्षणक्षणमे उत्पत्तिनाशको प्राप्तहोतीजो बुद्धि नाम विज्ञान सोइ सर्परूपहोइ भासता है. बुद्धिसे भिन्न रज्जुमे वा अन्यत्र कहूंभी सर्प हैनही, किंतु क्षणिक विज्ञानरूपजा बुद्धि है तिसकाही सर्परूपसे भान अरुकथनहोना तिसकानाम आत्मख्याति कही है। यहभी कथन मिथ्याही है काहेते. जबपर्यंत अधिष्ठानका ज्ञान नहीहोता तब बहुतकाल पर्यंतभी भ्रम निवृत्त नहींहोता, जो सर्प क्षणिक विज्ञानरूप होवे तो अधिष्ठानज्ञानविना स्वयंक्षणानंतर भ्रम नाश होइजाता जबकि ज्ञानविना बहुकालपर्यंतभी नाश होवे नही यांते आत्मख्याति वादभी असत्यही है.
३॥ प्राचीन नैयायिक अरु वैशेषिक अन्यथाख्याति इसरीतिसे मानते है जैसे पित्तदोषसे जठराग्नि बहुत. भोजनके पचावनेको समर्थ होवे है, तैसे नेत्रभी पित्तादिदोषसे देखनमे अधिकसमर्थ वालाहुवा दूर
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