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अरु सर्प है यहपद सर्पके स्मृतिज्ञानका बोधक है. सो दूसराज्ञान है इनोंके मतमे सर्वत्र दो ज्ञानही होवे है यहपद रज्जुके सामान्य प्रत्यक्षज्ञानका बोधक है सर्प है यहपद सर्पक स्मृतिरूप द्वितीय ज्ञानका सूचक है यांते इसके मतमें कहभीभ्रम ज्ञान नही है तोभी प्रमातामे भय लोभदि दोष तथा प्रमाणमे पितादि दोष रहे है तिसके बलते पुरुषको एसा विवेक नहीरहसकता जो मेरेको दो ज्ञानभये है है दो ज्ञानका जो अविवेक है सोइ सांख्यीयों तथा मीमांसकोंके मतमे भ्रममानते है जब एसा ज्ञानहोवे जो हमको दो ज्ञानभये है तब तिसज्ञानसे सर्पभ्रमकी निवृत्ति होजाती दे॥
६॥ यह तिनोंका मत है सोभी तिनोके अविवेककाही सूचक है. काहेते, जो रज्जुमे सर्पकी स्मृतिमात्र होवे तो भय अरु भागना नहींहोना चाहीये, काहेते. जो यहां भयभीत होता है तथा भागता है कहं भयते भागनेसे गढामे गिर मरभी जाता है सो सर्पके स्मृतिमात्रसें भय भागना मरना. अनुभव विरुद्ध होनेते एसा अख्यातिवादभी असतही है,
और जब रज्जुका प्रत्यक्षज्ञानहोता है तब कहता है इस रज्जुमे हमको असत्सर्पका भान होता भया. एसा नहीकहता जो रज्जुमे सर्पकी स्मृति होतीभई
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