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(१७) यांतभा अख्यातिमत असत्ही है और एक कालावच्छिन्न अंतःकरणमे विरोधी प्रत्यक्ष अरु स्मृति यह दो ज्ञान होतेभी नहीं यांते अख्याति अनादरणीय जाननी॥
है शिष्य इस उक्त प्रकारसे वे पूर्वपक्षरूप चार ख्यातियोंका मंडन तथा खंडन तुमसे कहि सुनाया. पूर्वोक्त दूषणोसें दूषित ये चारख्याति अंगीकारके योग्य नहीं किंतु वक्षमाणजा अनिर्वचनीय ख्याति है जा सत्असत्से विलक्षण रूप है सा तुमको वि. स्तारसे कहता हुं तुम सावधानमनसे श्रवण करो। इति श्री चतुर्दश कमलमे चतुष्टय ख्यातियोंका
कथन समाप्तः * १॥ अथ पंचदश कमलमे अनिर्वचनीय ख्याति*
जहां घटविषे घटका ज्ञानहोता है तहां अंतःकरण की वृत्ति नेत्रद्वारा बाहर निकलकरके घटसमाना. कार होइके घटका आवरणदूरकरके यहघट है एसे घटको जाने है तहां घटज्ञानमे प्रकाशभी सरकारी होता है विनाप्रकाश घटप्रत्यक्ष होताही नही। और जहां रज्जुविषे सर्पभ्रमहोवे है तहां नेत्रद्वारा अंतःकरणकी वृत्ति निकलकर रज्जुदेशमे जायकरभी प्रकाशविना रज्जुसमानाकार होतीनही॥
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