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(८१) और “ विदतादविदतादधि ” इति श्रुतिप्रमाणसे साक्षी ज्ञानाज्ञानसे रहित है यह कहा है. तिस साक्षीकी एकता ब्रह्मके साथ निर्विघ्न बनती है. घटोपाधिरहित घटाकाशकी महाकाशके साथ जैसे एकता बने है तैसे साक्षीकी ब्रह्मके साथ एकता बने है.
९ और जो आपने कहा अंतःकरणवाले जीवसे भिन्न कोईभी साक्षी बन नही सकता सो कहना नही बनता. काहेते अंतःकरण वशिष्ठ जीवसें भिन्नभी साक्षी है, जैसे एक स्त्री गृहस्थाश्रमीका विशेषण है, स्त्रीके सुखदुःखको अपनेमे अनुभव करनेसे; सा स्त्री पतिके संन्यासकाल. विषे पति संन्यासीकी उपाधि रूपभी है. तिसके सुखदुःखसे संन्यासी सुखी दुःखी नही होनेते; जैसे तिस संन्यासीपतिकी गुरुके साथ भोजनआसनादिकोंमे एकता होती है तैसे उपाधिरहित सा. क्षीकीभी ब्रह्मके साथ एकता बननेसे जीवब्रह्मकी एकतारूप ग्रंथका विषय निर्विघ्न बने है. यांत जो तुमने पूछाया में ब्रह्मसें भिन्न हूं अथवा अभिन्न हूं सो इतने प्रतिपादनसें तुं ब्रह्माभिन्न सिद्धभया यह जीव ब्रह्मकी एकता प्रतिपाद्य है. ग्रंथ प्रतिपादक होनेते ग्रंथका और ब्रह्मात्मैक्यताका
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