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( ८३ ) प्रतिपाद्यप्रतिपादकभाव संबंध दूसरा अनुबंध जानना. आगे प्रयोजन अधिकारीकाभी निरूपण करेंगे. ॥ इति श्रीदशमकमलमे विषय संबंध दो अनुबंधाऽलं ॥ १६॥ अथ एकादश कमलमे अनुबंधो विषे प्रयोजनं ॥
|| शिष्य उवाच. हे स्वामिन् आपने कहा तुम ब्रह्मसे अभिन्न हो सो एसे जीव ब्रह्मकी एकता जाननेसें क्या फल अनुभवसे सिद्ध होवेगा. ॥ श्री गुरुरुवाच. हे सुजन वेदांतग्रंथद्वारा ब्रह्मात्मैकत्वज्ञानसें अनर्थकी निवृत्ति और परमानंदकी प्राप्ति तुमको ज्ञात होवेगी. यह दोनो ग्रंथका प्रयोजन है. एसे श्रवण करके शिष्य फिर बोलता है । हे नाथ संसारको नित्य दोनेसें ज्ञानसे निवृत्ति कैसे होवेगी. संसारनिवृत्तिविना परमानंदकी प्राप्तिकी आशादी क्या करनी. तिस कारणते ग्रंथका प्रयोजनभी नदी सिद्ध होवेगा. जो कहो संसार मिथ्या है तिसकी ज्ञानसे निवृत्ति भी होती है सो अनुजवमे नही आवता. काइते मिथ्यापणेका साधक पांच पदार्थ है तिनमे एकभी नही देख परता. जो कहो ते पदार्थ कौन है तदां सुनो. २ ॥ एको पूर्वदृष्ट सत्यपदार्थ के ज्ञानजन्यसंसारके असत्यतामे कारण द.
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