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( ६१ )
१ अथ अष्टम कमलमे ज्ञानकी सप्तभूमिका राजयोगावलंबी कहते है. ॥
॥ ज्ञानके भूमिकाका नाम शुभेच्छा, सुविचारणा, तनुमानसा, ॥ १॥ सत्त्वापत्ति, असंसक्ति, पदार्थाजावनी, तुर्या है. अब क्रमसे इनोका यह अर्थ है. ॥२॥ जो मुमुक्षु साधनचतुष्ठयसंपन्न हूवा वा ब्रह्मवेत्ता सद्गुरुसें ब्रह्मविद्याका श्रवण करता है सा शुभेच्छा है. ॥३॥ सो मुमुक्षु जब महावाक्य तत्वमसि " इसका अर्थ जीवब्रह्मकी एकताको नानाप्रकारके दृष्टांतों से विचारता है तब ज्ञानी तिसका नाम सुविचारणा कहते है. ४ ॥
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२ ॥ सो मुमुक्षु जब महावाक्योंके अखंड निर्विकल्प लक्ष्यार्थमे खमनको स्थिर करे है सा तनुमानसा भूमिका कही है. यह तीसरी ध्यानरूपी भूमिका है. ॥५॥ हे श्रीरामचंद्र, मुमुक्षु यहांसूधी इस संसारको नाना भेदवाली जाग्रत् जाननेसे ब्रह्मवेत्ता इन तीनों भूमिकाका नाम जाग्रत् कहते है. ॥६॥ सो मुमुक्षु निर्विकल्पमे दृढ स्थिरता पाय कर स्वयं निर्विकल्प हूवा अपरोक्षज्ञानी होता है. इस ज्ञानीकी अद्वैतमे दृढ स्थिति होती है, द्वैत नही भासता है. जो देहयात्रासमय संसार भासे तो स्वप्न समान जानता है. यह चतुर्थ भमिका है. ||७||
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