________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(६७) जो आत्मनिष्ठ ब्रह्मज्ञानी है ते सर्वदा जग. के कार्य करते हुएभी सर्वमे ब्रह्मदृष्टिरूप समा. धिवालेही है.॥६॥ हे राजन् , बाहरसें पद्मासन लगानेसें ब्रह्मांजलि करनेसें अंतरमें विषयवासनासे विक्षिप्तचित्तवालेको क्या समाधि होती है ? ७ हे भगवन् , ब्रह्मात्मैक्यज्ञानअग्नि जो है सो सर्व आशारूप तृणके जलावनेवाला समाधिनामसे कहा है. केवलपद्मासनवाला मौनी समाधिवाला नही.८ __॥ बुद्धिमानोने शांत नित्यानंदी यथार्थ ज्ञातृ ऐसी जा निर्मल प्रज्ञा है तिसीका नाम समाधि कहा है.९ निर्भय तथा देहाभिमानसे रहित रागद्वेषते विना जा बुद्धि सुमेरुसमान अचल है तिसको समाधि कहा है. १०चिंतारहित ब्रह्मज्ञानसें पूर्ण तथा ग्रहणत्यागक कल्पनासे रहित जा पूर्ण मनकी वृत्ति है साई समाधि है. ११ जिस काल भै ब्रह्म हं एसा निश्चय भया तबसें महात्मालोकोकी अखंड समाधि बनी रहती है. १२ जैसे बालकसे दूर खेंची कमलकी तंतु टूट परती है तैसे ब्रह्मतत्त्व वेत्ताकी समाधि एकवार लगी हुई फिर नही टूटती. १३
॥जैसे सूर्य संपूर्ण दिन प्रकाशसें ही समाप्त करे है तैसे ज्ञानियोकी बुद्धिभी मरणपर्यंत ज्ञानसे पूर्ण रहे है. १४
For Private and Personal Use Only