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(३९) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह, यह पांच प्रकारके यम कथन करे है.
शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वरप्रणिधान, यह पांच प्रकारके नियम कहे है ॥ ___ आसन-सिद्धासन, पद्मासनादिक बहुत है. प्राणायम-रेचक, पूरक, कुंभक,केवलकुंभक है.
२॥ प्रत्याहार.इंद्रियोंको विषयोंते रोक करके प्रतिक्षणं निर्विकल्प परमात्मामे स्थिर करना ॥
धारणा-वृत्तिकी स्थिति-निर्विकल्पात्मामे अधिककाल रोकनेके सामर्थ्य का है. ॥ ध्यान. वृत्तिका प्रवाह निर्विकल्पात्मामे होना.
॥समाधि-विजातीयाकारविना निर्विकल्पाकार सर्वदा वृत्तिकी स्थिरता होनेका नाम है.
३॥ सा समाधि सविकल्प, निर्विकल्प, भेदसे दो प्रकारकी कही है, सो प्रकार श्रवण करो. सविकटप समाधि. जिसमे मै ब्रह्म हूं एसा शब्द होवे सा शब्दानुविद्धरूप सविकल्प समाधि है । मैं ब्रह्म हूं एसा जिसमे उच्चारण न होवे तिस समाधिका नाम शब्दाननुविद्ध सविकल्प समाधि है । मैं ब्रह्म हूं इस त्रिपुटीका भान सविकल्प समाधिमे होवे है सो अभेदरूपसे होवे है जैसे कुंडल कनकरूप है एसे अभेद भासे है.
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