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८|लय विघ्न तिसका नाम है जो मन खात्मध्यानको त्याग करके निद्रामे लय हो जावे हैं. तिस मनको अल्प आहार सेवन से प्रबोध करके ब्रह्मानंदके ध्यानमे फिर स्थिर करे. ॥ विक्षेप विघ्न तिसका नाम है जो ब्रह्मको सूक्ष्म होनेसे तिसमे चित्तकी स्थिरता दृढ नही होनी. तिस चित्तको शांति करके फिर ब्रह्ममे स्थिर करना.
* ॥ कषाय विघ्न तिसका नाम है जो अंतबह्य स्त्रीआदिक विषयका चिंतन करना. तिस विघ्नको विषयोमे दोषदृष्टि करके निवृत्त करके अपने मनको ब्रह्मानंदमे स्थिर करना. यही दोषके निवृतिका उपाय है ॥
९ ॥ दे गुरो कैसी वह दोषदृष्टि है जिस दोषदृष्टिसे विषयोंका तथा देहकुटुंबका ध्यानसमयविषे स्मरण न होवे. ॥ श्री गुरु कहता है हे प्रिय यह स्वदेह तथा ब्यादि जे विषय है अशुचि अनित्य दुःखरूप अनात्मरूप है ऐसे योग शास्त्रमे कहा है तथा सर्व विवेकीयोके अनुभव सिद्ध भी है; तिस अशुचिमे शुचित्वबुद्धि जैसे 'मै ब्राह्मण हूं, मैं क्षत्रिय हूं, मै वैश्य हूं, इत्यादि विपरीत ज्ञान होना तथा जो अनित्य है तिसमे नित्यत्वबुद्धि होनी तैसे जो अनात्मा तिसमे आत्मत्वबुद्धि होनी
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