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(५१) १२ ॥ अब चित्तकी जे पंच भूमिका है तिनोका नाम तथा तिन भूमिकाबाले चित्तका क्रमसें नाम कथन करते ह. क्षेप, मूढता, विक्षेप, एकाग्रता, निरोध, ये तो भूमिकाका नाम है. तिसवाले चित्तका नाम क्षिप्त, मूढ, विक्षिप्त, एकाग्र, निरुद्ध है. अब क्षेपादिक पांच भूमिकाका अर्थ लिखते है. लोकवासना, देहवासना, शास्त्रवासना, क्षेप है. निद्रादि तामस कर्ममे आसक्ति मूढता है.
१३ ।। ध्यान छोडकरके जा चित्तकी वहिमुखता यदा कदा होवे है तिसका नाम विक्षेप कहा है. अतीतवर्तमान कालमे जा चित्तकी ब्रह्माकारता है तिस चित्तके एकाकार परिणामताका नाम एकाग्रता योगीजन कहते है. अभ्यासकी प्रबलतासे जा एकाग्रताकी वृद्धि होनी, तिसका नाम निरोध भूमिका है.
१४ ॥ अब पंचभूमिकाके कथनका प्रयोजन दिखावते है. क्षिप्त अर मूढ मनकी ध्यानमे अधिकारताही नही. विक्षिप्तांतःकरणकी ध्यानमे प्रवृत्ति बन सके है. एकाग्र और निरुद्ध ये दो मनकी अवस्था समाधिसे उत्तर कालमेही होवे है.
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