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(५५)
चित्तादि सर्व जगतकों ब्रह्मदृष्टिसे देखना तिस करके जो सर्व वृत्तियोंका निरोध होना सो
प्राणायाम जानना. ५
तीन कालमे जगत नहीं इस निश्चयका नाम रेचक है. मैं ब्रह्म सच्चिदानंद स्वरूप हूं इस वृत्तिको पूरक जानना. ६
सच्चिदानंद मे निश्चल वृत्तिका नाम कुंभक प्राणायाम है. एसा प्राणायाम ज्ञानयोंका है. नासा बंधकर प्राणीको रोकना ये मंदजन करते है. ७ सम ब्रह्मवृत्ति रहनेको समानता कहीं है. शुष्क काष्ठ समान शरीर रखना ये समानता नही है. ८ परमात्माविषे वाणीकी विषयता नही यही मौन जाननी, अथवा जगत् अनिर्वचनीय है वाणीका विषय नही. ९
एसी मौन सहजनामवाली ज्ञानी जनोकी जाननी; तूष्णी होड़कर बेठना यह मौन मूर्खोकों करना कहा है. १०
३ ॥ आदि मध्य अंत इन तीन कालमे मैं जीव हूं एसे जिस ब्रह्ममे सकल्पभी नही सो ब्रह्म सच्चिदानंदात्मादी विजन एकांत देश कहा है ११
सर्व विषयको अधिष्ठान ब्रह्मात्मरूप जान करके जो ब्रह्ममे ही मग्न रहता है सो प्रत्याहार जानो. १२
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