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(५३) जबतक अंतःकरण है तब पर्यंत तो तिसके धर्म जे रागद्वेषादिक है ते सूर्यमे उष्णता स नि निवृत्त होतेही नही. तथापि उद्धृत रागद्वेषवाले मनकी समाधिमे अधिकारता न होने परभी जो अंतःकरण अनुद्भुत रागद्वेषवाला है तिस अंतःकरणकी समाधिमे निर्विघ्न प्रवृत्ति हो सकति है. यही पंच भूमिकाके वर्णन करनेका सिद्धांत है, सो हे शिष्य तुमार तांइ कह्या ॥ ॥ इति श्रीषष्ट कमलमे अष्टांग योग समाप्त ॥ १ ॥ अथ सप्तम कमलमे श्रीशंकराचार्यानु
सारी राजयोगका वर्णन ॥ * सर्व पापसे रहित मनवाले मुमुक्षजनको यह राजयोगही मुक्तिप्रदाता है. और किंचित्पापाचारी चंचल पुरुषको अष्टांग योगमे अधिकार कह्या है. १
__ संपूर्ण जगतमे ब्रह्मदृष्टि करके जो इंद्रियोंका संयम करना इसका नाम यम कथन किया है.२
विजातीय ज्ञानविना अखंड ब्रह्माकार वृत्ति करके रहनेका यत्न करना तिसका नाम नियम है.३
जा विश्वका अधिष्ठान है तथा जो अद्वितीय जगतका कारण करके प्रथमही सिद्ध है तथा जि. समे सर्व सिद्ध पुरुष स्थित होते है सो ब्रह्म सिद्धासन जानना. ४
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