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६और दूसरी जोनिर्विकल्प समाधि अद्वैतावस्थानरूप है नहीं तो त्रिपुटिका अरु वृत्तिका अत्यंतलय हो जाता है.जैसे तप्तलोहामे जलबिंदु लय होजावे है तैसे त्रिपुटिके आकारवाळी वृत्ति लय होइ जाती है, शेष निर्विकल्प अपना रूपही रहि जाता है. और सुषुप्ति अवस्थामे अंतःकरणका तो कारण अज्ञानसे लय होव है यांते देह गिर पडता है. और निर्विकल्प समाधिमे वृत्ति ब्रह्मानंदमे लय होवे है यांते देह गिरता नही तथा सुखका भान स्पष्ट होवे है,
और सुषुप्तिमे स्पष्ट सुखका भान नही होता; इतना निर्विकल्प समाधिका सुषुप्तिका भेद जानना ॥
७ ॥ इस निर्विकल्प समाधि करनेमे चार प्रकारके विघ्न प्राप्त होते है. जो तिनका नाश करके सर्वदा निर्विकल्प परमात्मामे निमग्न रहे है सो पुरुष जीवन्मुक्त होता है, फिर विदेहमुक्तभी होवे है. इस रीतिसे संक्षेपते समाधिका वर्णन कीया है । अब चार विघ्न तथा तिनोके निवृत्तिका उपाय कहे है सो श्रवण करो. लय, विक्षेप, कषाय, रसास्वाद यै चार विघ्न कहे है ॥
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