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८ | तीर्थंकर महावीर साक्षात्कार किया और फिर विश्व को उसके सम्बन्ध में सत्य ज्ञान दिया। उनका ज्ञान ही हमारे लिये धर्म था, उपदेश था। इन तीर्थंकरों में प्रथम तीर्थंकर थे भगवान ऋषभदेव और अंतिम तीर्थकर हुये भगवान महावीर। इनके मध्य बाईस और तीर्थकर हो गये । क्रमशः २४ तीर्थंकरों के नाम इस प्रकार हैं१ श्री ऋषभदेव
१३ श्री विमलनाथ २ श्री अजितनाथ
१४ श्री अनन्तनाथ ३ श्री संभवनाथ
१५ श्री धर्मनाथ ४ श्री अभिनन्दन
१६ श्री शान्तिनाथ ५ श्री सुमतिनाथ
१७ श्री कुन्थुनाथ ६ श्री पद्मप्रभ
१८ श्री अरनाथ ७ श्री सुपार्श्वनाथ
१६ श्री मल्लिनाथ. ८ श्री चन्द्रप्रभ
२० श्री मुनिसुव्रत ९ श्री सुविधिनाथ
२१ श्री नमिनाथ १० श्री शीतलनाथ
२२ श्री अरिष्टनेमि ११ श्री श्रेयांसनाथ
२३ श्री पार्श्वनाथ १२ श्री वासुपूज्य
२४ श्री महावीर स्वामी इतिहास और पुराण की दृष्टि
इन चौबीस तीर्थंकरों में प्रभु महावीर एवं पुरुषादानीय भगवान पार्श्वनाथ इतिहासकारों को दृष्टि में साक्ष्य हैं। उनके विषय में अनेकानेक ग्रंथ एवं अन्य प्रमाण
रास्ता बताता है । नाविक स्वयं मार्ग देख चुका है, नदी को पार कर चुका है, मंजिल तक पहुंच चुका है, वह कृतकार्य है, किन्तु फिर भी वह क्षणभर भी विश्रान्ति लिये बिना पार जाने वालों को उस पार पहुंचाने में, रास्ता बताने में संलग्न है। वह सतत श्रम करता है कि अधिक-से-अधिक लोग इस नदी को पार कर अपनी मंजिल (मोक्ष) तक पहुंच सकें। इसी उद्देश्य की सफल परिणति में उसका तीर्थंकर नाम सार्थक होता है। जैनधर्म ने जो भाव, जो संकेत, जो ध्वनि इस तीर्थंकर शब्द में भरी है, उसकी अभिव्यक्ति न भगवान शब्द कर सकता है, न ईश्वर, न अवतार, और न पैगम्बर । - जैन परिभाषा में तीर्थ (घाट) चार प्रकार के माने हैं-साधू, साध्वी, धावक, धाविका । इन्हें संघ भी कहते हैं। इस संघ की स्थापना करने के कारण भी वह तीर्थकर कहलाते हैं। यह भी एक प्रकार का धार्मिक गणराज्य समझना चाहिये।