Book Title: Terapanth Maryada Aur Vyavastha
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya, Madhukarmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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लिखित सं० १८५० री जोड़ (ढा०)
ढाळ : ७ १ लिखत पचासो नो बली, कहियै छै अधिकार। भिक्खू स्वाम तणी भली, मर्यादा सुध सार।।
'स्वाम भिक्खू नी मर्याद सुणीजै ॥ध्रुपदं। १ बड़ा तण नामै दीक्षा देणी, आप-आप रै शिष्य करवा रा त्याग।
आगै पाना में मर्यादा लिखी छै, ते लोपण रा त्याग वारू शिवमाग॥ (जो किण ही) मर्याद उलंघी आज्ञा में न चाल्यां, अथवा किण रा देख्या अथिर परिणाम।
अथवा टोळा में टिकतो न देख्यां, तो ग्रहस्थ नै जणावा रा भाव छै ताम॥ साधु-साधवियां नै जणावा रा भाव छै, पछै कोई कहोला टोळा मांहि
तथा लोका में आसता उतारै, तिण सूं घणा सावधान चालजो ताहि ।। ५ एक-एक नै चूक पड्या तुरत कहिजो, कजियो म्हां तांइ म आणजो तिलमात।
उठै रो बोल उठैज निवेरणो, पूछयां अणपूछयां कहणी बीती बात।। ६ कोई टोळा मां सूं टळे संत-सत्यां रा, अवगुण बोलै तथा दोष बताय।
तिण री कही तो मानणी नाही, तिण नै झूठो बोलो जांणणो मन माय।। साचो हुवै तो ज्ञानी जाणै, पिण छद्मस्थ रै ववहार जाणणों झूठो। एक दोष सूं बीजो भेळो करै तो, तिण नै कहिजै अन्याई नै महादूठो।। परिणाम जेहनां मेला होसी ते, साध अनै आर्या रा ताम। छिद्र जोय-जोय भेला करसी, ते तो भारीकर्मा जीवां रा छै काम ।। सरल आतमा रो धणी ते इम कहिसी, कोई ग्रहस्थ संत-सत्यां रा दूजा नैं।
सभाव प्रकृति तथा दोष कहै तो, तिण नैं यूं कहिणो, म्हांनै कहो थे क्यां नै। १० कहो तो धणी नैं, के कहो स्वामीजी नै, ज्यूं यां नै प्राछित दे करै सुध निसंक।
न कह्या दोषीला रा सेवणहार थे, स्वामीजी नै न कहिसो तो था मैं इज बंक। ११ थे म्हानै कह्या सूं कांइ हुवै छै, इम कहि आप न्यारो हुवै ताहि।
पैला रा दोष धारी भेला करै ते, एकंत मृषवादी छै अन्याई।। १२ किण ही नै खेत्र काचो बतायां सू, (किण नै) कपड़ादिक मोटो दीधा द्वेष जाग।
इत्यादिक कारणै कषाय उठै जद, गुरवादिक री निंद्या करवा रा त्याग।।
२. अलग होकर ।
१.लय : आ अनुकंपा जिन आज्ञा में । २२ तेरापंथ : मर्यादा और व्यवस्था