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के एक धर्म या अनेक धर्मों को जान सकता है। इस आधार पर यह देखा जाता है कि कोई व्यक्ति किसी वस्तु के अनन्त धर्मों में से दस-बीस या सौ-दो सौ धर्मों या लक्षणों को जानता है तो कोई दूसरा व्यक्ति अनन्त धर्मों में से अन्य दस-बीस या सौ-दो सौ धर्मों को जानता है। इस प्रकार सबके बोध अपनी-अपनी दृष्टि से सत्य होते हैं। कोई गलत नहीं होता है। इसके लिये जैन चिन्तन में अन्धगजन्याय का उदाहरण दिया गया है, जो इस प्रकार है
कुछ अन्धे लोगों को हाथी के विषय में ज्ञान प्राप्त करने की जिज्ञासा हुई और वे लोग हाथी के निकट पहुँच गये। आँख के अभाव में उन लोगों ने हाथी को छू कर उसके सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त किया। अन्धे लोगों ने हाथी के अलग-अलग अंगों का स्पर्श किया था, अतः उन लोगों का ज्ञान आंशिक था; किन्तु जब उन लोगों से पूछा गया कि हाथी कैसा होता है तो उन लोगों ने इस प्रकार उत्तर दिया- जिसने हाथी के पैर का स्पर्श किया था उसने कहा कि हाथी खम्भे की तरह होता है। जिसने हाथी के कान का स्पर्श किया था उसने कहा कि हाथी सूप की तरह होता है। जिसने पूँछ का स्पर्श किया था उसने बताया कि हाथी रस्सी की तरह हिलने-डुलनेवाला होता है। यहाँ पर अन्धे लोगों का ज्ञान अपनी-अपनी दृष्टि से, अपनी-अपनी अपेक्षा से सही था; किन्तु दोष यह था कि उन लोगों ने अपने आंशिक ज्ञान को पूर्ण ज्ञान, सापेक्ष ज्ञान को निरपेक्ष ज्ञान बताया। उन लोगों में से किसी ने सम्पूर्ण हाथी का स्पर्श नहीं किया था, बल्कि विभिन्न अंगों का स्पर्श किया था। अतः उनके ज्ञान अलग-अलग अंगों के थे, जो आंशिक ज्ञान थे। जैन दर्शन के अनुसार यह दोष अन्धे लोगों के साथ
नहीं है, बल्कि आँखवालों के साथ भी है, जो अपने आंशिक और सापेक्ष ज्ञान को ही पूर्ण तथा निरपेक्ष ज्ञान मान बैठते हैं तथा एक-दूसरे का विरोध करते हैं। जैन दर्शन यह मानता है कि सामान्य लोगों के ज्ञान सापेक्ष होते हैं। उनकी अपनी-अपनी दृष्टियों के अनुसार होते हैं इसलिए सभी अपनी-अपनी अपेक्षा से सही होते हैं। अतः मतभेद और विरोध कोई प्रश्न ही नहीं उठता।
जैन दर्शन अनेकान्तवाद का प्रतिपादन करके विश्व को सहिष्णुता का सन्देश देता है। विचारों में मतभेद होने के कारण ही आपसी कलह, संघर्ष होते हैं। जब व्यक्ति के मन में यह बात आ जाती है कि मात्र उसका ही विचार सही नहीं हो सकता है, बल्कि अन्य लोगों के विचार भी ठीक हो सकते हैं तब फिर उसके मन में विद्वेष भाव नहीं जगता है। यद्यपि अनेकान्तवाद का सिद्धान्त अति प्राचीन सिद्धान्त है, फिर भी आज की स्थिति में यह प्रासंगिक है। आजकल व्यक्ति, समाज, राष्ट्र, विश्व सबके सब तनाव और संघर्ष से पीड़ित है। व्यक्ति में अपनी पारिवारिक समस्याओं के कारण तनाव होता है। समाज में धनी - गरीब, ऊँच-नीच के भेद-भाव देखे जाते हैं। राष्ट्र में आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक, विभिन्न प्रकार के संघर्ष चलते रहते है। विश्व में अनेक राष्ट्र हैं,
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