________________
३४
सिद्धार्थनुपतितनयो भारतवास्ये विदेहकुण्डपुरे । देव्यां प्रियकारिण्यां सुस्वप्नान् संप्रदर्श्य विभुः । । ४ । ।
( आचार्य पूज्यपाद ( वि० ५वीं शताब्दी) विरचित दशभक्ति, पृष्ठ ११६ ) (ग) अथ देशोऽस्ति विस्तारी जम्बूद्वीपस्य भारते ।
विदेह इति विख्यातः स्वर्गखंडसम श्रियः । । १ । । तत्राखंडलनेत्रालीपद्मिनीखण्डमण्डनम् ।
सुखांभः कुण्डमाभाति नाम्ना कुण्डपुरं पुरम् । । ५ । ।
(आचार्य जिनसेन (वि० ८वीं शताब्दी) विरचित हरिवंशपुराण, खण्ड १,
(ख)
उपरोक्त प्रमाणों में क्षत्रियकुण्डगाँव को मज्झिमदेश और विदेहदेश के अन्तर्गत बताया है। ऊपर निर्देशानुसार मज्झिमदेश आर्यावर्त्त का नामान्तर है, इसी के अन्तर्गत ही विदेहदेश है। प्रकारान्तर से क्षत्रियकुण्ड विदेह का एक नगर ही है।
भगवान् को शास्त्रों में 'वेसालिय' अर्थात् वैशालिक कहा है। 'वैशालिक' की व्याख्या करते हुए बताया गया है
(१) विशाला जननी यस्य विशालं कुलमेव च ।
विशालं वचनं चास्य तेन वैशालिको जिनः । ।
सर्ग २ )
सूत्रकृताङ्ग शीलांकाचार्य टीका, अ० २, उद्दे० ३.
विशालापुत्र (विशालायाः अपत्यम् वैशालिकः ) और विशाल कुल होने से और विशाल वचन वाला होने से प्रभु वैशालिक हुए।
(२) तत्थ णं सावत्थीए नयरीए पिंगलए णामं नियंठे वेसालिअसावए परिवसइ (मूलच्छाया:- तस्यां श्रावस्त्यां नगर्यां पिङ्गलको नाम निर्ग्रथो वैशालिक श्रावकः परिवसति ) ।
भगवतीसूत्र सटीक, भाग १, पृष्ठ २३१. उसी श्रावस्ती नगरी में पिंगलक नामक निर्ग्रन्थ वैशालिक श्रावक रहता है।
भगवान् के वैशालिक नाम से प्रगट है कि उनका वैशाली से गहरा सम्बन्ध था । जिस प्रकार विदेह में रहने के कारण उन्हें विदेह कहा जाता था उसी प्रकार वैशाली नगरी से सम्बन्ध होने के कारण उन्हें 'वैशालिक' भी कहा जाता था। इसका स्पष्ट अभिप्राय यह है कि क्षत्रियकुण्ड (जहाँ कि भगवान् माता के गर्भ में आये थे) का वैशाली से सम्बन्ध है अथवा उसके अतिनिकटस्थ कोई नगर है।
Jain Education International
ब्राह्मणकुण्डग्राम क्षत्रियकुण्ड के निकट था और इन दोनों के बीच में बहुशालचैत्य था। एक बार भगवान् विहार करते हुए ब्राह्मणकुण्ड आये थे और इस गाँव के निकट
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org