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विनयकल्लोल
उपा० चन्द्रकीर्ति
खेमराज (वि० सं० १६८१ में नलदमयन्तीरास के प्रतिलिपिकार)
उपाध्याय चन्द्रकीर्ति के द्वितीय शिष्य सुमतिरंग भी अपने समय के प्रमुख रचनाकारों में से थे। इनके द्वारा रचित योगशास्त्र भाषाचौपाई (रचनाकाल वि० सं० १७२० / ई०स० १६६४), मोहविवेकरास (वि० सं० १६६६ ), प्रबोधचिन्तामणि अपरनाम ज्ञानकलाचौपाई (वि०सं० १६६६ ), जम्बूचौपाई (वि० सं० १७२९ / ई०स० १६७३ ) आदि कई कृतियाँ प्राप्त होती हैं । २९
१७२२ / ई० स० १७२२ / ई०स०
उपाध्याय सुमतिरंग के प्रशिष्य एवं सुखलाभ के शिष्य पं० जिनहंस ने वि०सं० १७५६ में आनन्दश्रावकसन्धि नामक कृति की प्रतिलिपि की। इसकी दाता प्रशस्ति में उन्होंने अपने शाखा की जो गुर्वावली दी है, वह इस प्रकार है :
चन्द्रकीर्ति
सुमतिरंग
सुखलाभ
पं० जिनहंस (वि० सं० १७५६ में आनन्द श्रावकसन्धि के प्रतिलिपिकार)
इसी शाखा के जयकीर्ति नामक मुनि ने वि० सं० १८६८ / ई०स० १८१२ में श्रीपालचरित की रचना की। इसकी प्रशस्ति में उन्होंने अपनी गुरु-परम्परा की लम्बी सूची है, जो निम्नानुसार है ३ २.
वा० चन्द्रकीर्ति
महिमाहेम
सुमतिरंग
1
सुखलाभ
पं० जिनहर्ष
I
माणिक्यमूर्ति
1
भावहर्ष
अमरविमल
1
आज्ञासुन्दर
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जयकीर्ति (वि० सं० १८६८ में श्रीपालचरित के
रचनाकार)
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