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तिर्यञ्च सांप विषधर और निर्विष उभय प्रकार के होते हैं। मार्च १९९४ के मनोहर कहानियां से विदित होता है कि हजारों वन्य प्राणियों की छालें निर्दयतापूर्वक उतार कर एवं हड्डियां आदि भी हर साल भारत से तस्कर विदेश भेजते हैं जिनकी हत्या करके माल बिकता है। सांपों में गेहुआँ, कोबरा, अजगर, उड़न सांप, जलेबिया आदि हरे, नीले रंग के अनेक प्रकार के सांप हैं। करैत सांप एक लाभप्रद विषधर है। हमारे देश में पाये जाने वाले सभी सांप विषधर नहीं होते। भारत में २३३ प्रकार के सांप पाये जाते हैं, उनमें केवल ६९ प्रकार के जाति में विष पाया जाता है। इनमें से १६ जातियों के सांप ऐसे हैं जिनका विष अधिक प्रभावशाली होता है। इनमें करैत और दवोईयाँ हैं। करैत देखने में अधिक सुन्दर होता है, यह अपना बचाव बड़ी उग्रता से करता है। इनका विष बहुत तेज होता है। चमकदार काले अथवा नीले रंग की चमड़ी पर छोटी-छोटी सफेद रंग की आड़ी पट्टियां इसे बहुत आकर्षक बना देती हैं। ये सांप भारत, बंगला देश से लेकर पाकिस्तान, श्रीलंका तक पाये जाते हैं। ये छोटी-छोटी झाड़ियों में, मानव बस्ती के आस-पास पाये जाते हैं और घरों में प्रवेश करके अपना आवास बनाने की कोशिश करते हैं। प्राय: पानी के स्रोतों के आस-पास ही यह रहता है। यह अपने पर मुसीबत आने पर ही काटता है, अन्यथा यह सांप मेंढक, छिपकली, चूहे आदि ही खाता है। किन्तु कई बार अपनी जाति के सांपों को भी अपना भोजन बना लेता है। करैत नर मादा से लम्बा होता है। इनका प्रजनन काल फरवरी से मार्च के बीच में होता है। मई से जुलाई के बीच ये अण्डे देते हैं और वे अण्डे कई समूह में होते हैं। इसमें विष की थैलियां मस्तिष्क के ऊपरीभाग में होती हैं। जब विष छोड़ा जाता है तब वह तरल होने के कारण हल्का पीले रंग का होता है। किस सांप में कितना विष होता है यह उसकी शरीर के गठन आदि क्षमता पर निर्भर है।
करैत साँप अधिकांशतः विषैला होता है। इसके विष से अनेकों प्रकार की औषधियां तैयार होती हैं। कैंसर में भी इसका विष काम में आता है।
देशी जीवों पर विदेशी लोगों की निगाहें बराबर लगी हुई हैं। वे भारत से बड़ी मात्रा में जीवों का आयात करके उनकी हत्या करके विविध काम में लेते हैं। देश की जैविक संपत्ति का अरबों का होता हुआ नुक्सान रोकना परमावश्यक है।
कतिपय उच्च कोटि के साँपों में मणिधारी साँप भी कथंचित् पाये जाते हैं। उसे प्राप्त करने वाले को पूरी सावधानी रखनी पड़ती है। कहा जाता है कि उस मणि के प्रभाव से जल प्रवाह भी मार्ग दे देता है। नेपाल में किसी के पास प्रभावशाली मणि होने और परीक्षा हेतु तस्तरी में पानी डालने पर मणि के प्रभाव से पानी दो भागों में हो गया। वह मणि पचीस लाख में देना चाहता था, ऐसा सुना गया।
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