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१३५ एवं शोषित वर्ग को सम्पन्नता एवं गौरव प्रदान करेंगे, सामान्य व्यक्ति के जीवन को ऊँचा उठायेंगे, सब में समानता लायेंगे लेकिन मात्र १०० वर्षों से भी कम समय में यह असफल सिद्ध हुआ। वहाँ के देशों की सामान्य जनता ने ही इस विचारधारा का विरोध किया, क्योंकि जीवन की आवश्यक वस्तुओं के अभाव से उनका जीवन त्रस्त हो गया था। दूसरी बड़ी विचारधारा पूँजीवाद की है, जिसका नायक अमेरिका है। इसका उद्देश्य है, प्रकृति के संसाधनों का अधिकतम उपभोग। यह भोगवाद पर आधारित है। आज वैज्ञानिक उपकरणों ने सामान्य व्यक्ति के जीवन को बहुत सारी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध करा दी हैं, लेकिन प्रश्न उठता है कि- क्या मनुष्य का जीवन पहले से अधिक सुखी एवं सौहार्दपूर्ण है? उत्तर नकारात्मक ही है। भौतिकताप्रधान पाश्चात्य युग की चकाचौंध का भीतरी पक्ष कितना अभिशाप-ग्रस्त है, यह एक गम्भीर विषय है। टूटते परिवार
हाल ही में ब्रिटेन से प्रकाशित सुप्रतिष्ठित पत्र “दि इकोनॉमिस्ट' ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है, जिसने पाश्चात्य जगत् के विचारकों को भी चौका दिया है। शीर्षक है- "इक्कीसवीं शताब्दी में अमरीकी परिवार का भविष्य'। यह रिपोर्ट शिकागो विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय मत अनुसन्धान केन्द्र ने २४ नवम्बर १९९९ को प्रस्तुत की थी। रिपोर्ट में प्रकाशित कुछ तथ्य इस प्रकार हैं
अमेरिका में परिवारों के संचालन एवं बच्चों के लालन-पालन में विवाह-संस्था
का महत्त्व घट गया है। - सन् १९६० एवं सन् १९९६ के बीच ३६ वर्षों में तलाक का प्रतिशत दगुना
हो गया है। सन् १९६० में अविवाहित माताओं की संख्या ५ प्रतिशत थी, जो सन् १९९६ में बढ़कर ३२ प्रतिशत हो गयी है। सन् १९७२ में ७२ प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिताओं (विवाहित) के साथ रहते थे, सन् १९९६ में मात्र ५२ प्रतिशत बच्चे अपने माता-पिता दोनों के साथ रहते हैं। अमेरिका में विवाहित स्त्री-पुरुषों को भी बच्चे नहीं चाहिए। सन् १९७२ में ४५ प्रतिशत माता-पिताओं के बच्चे नहीं थे। सन् १९९६ में ६२ प्रतिशत परिवारों में बच्चे नहीं है। अब अमरीकी युवक-युवतियाँ बड़ी उम्र में विवाह करने लगे हैं तथा कई तो शादी के पहले कुछ काल तक शादी-शुदा जीवन का प्रयोग करते हैं।
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