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(३) दिगम्बर एवं श्वेताम्बर सभी जैन संस्थाएँ इस स्थान के बराबर में ही कुछ भूमि लेकर अपनी-अपनी संस्था बनावें तो उपयुक्त है। यह प्रामाणिक रूप से पिछले लगभग तीन हजार वर्षों से जैन तीर्थ रहा है। यह क्षेत्र अवश्य सिद्ध क्षेत्र रहा होगा। यहाँ से जो सन्देश आप देंगे वह जन-जन तक पहुँचेगा।
(४) इस जगह का नामकरण 'वोद्धव स्तूप' व टीले का नाम 'वोद्धव स्तूप का टीला' होना चाहिए। यह नाम वहाँ से प्राप्त १५७ ईसवी के एक शिलालेख में अंकित है। कंकाली देवी का मन्दिर जिसके नाम पर इस स्थान को कंकाली टीला कहा जाता है, जो बहुत बाद का है।
अगर शासन कुछ न करे तो भी हम बराबर में भूमि लेकर आगे सम्भावनाओं के तीसरे बिन्दु पर योजनाबद्ध तरीके से कार्य आरम्भ कर सकते हैं ताकि भविष्य में शासन पर यहाँ पुनः स्तूप निर्माण का दबाव बनाया जा सके।
सत्येन्द्र मोहन जैन*
पूर्व अभियन्ता एवं नियामक, कला वीथिका, पार्श्वनाथ विद्यापीठ |
*. श्री सत्येन्द्र मोहन जैन पुरातत्त्वप्रेमी एवं अवकाशप्राप्त अभियन्ता हैं। अपने सेवाकाल में उन्होंने प्रदेश के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में जैनकलाकृतियों, उनके अवशेषों, प्रतिमाओं आदि का संकलन किया है। प्रो० सागरमल जी जैन की प्रेरणा से उन्होंने अपने संग्रह का बड़ा हिस्सा पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी को दानस्वरूप भेंट कर दिया जिसके आधार पर संस्थान अपना निजी संग्रहालय स्थापित करने में समर्थ हो सका है। भगवान् महावीर की २६००वीं जयन्ती के अवसर पर उन्होंने मथुरा स्थित कंकाली टीले के पुनर्निर्माण की ओर अपने उक्त वक्तव्य के माध्यम से सरकार एवं समाज का ध्यान आकर्षित किया है।
२६०० वें कल्याणक महोत्सव को पर्यावरण वर्ष के रूप में मनाने की अपील
जैन सोशल ग्रुप, इन्दौर द्वारा भगवान् महावीर के २६०० वें जन्म कल्याणक को अहिंसा की वर्तमान शब्दावली पर्यावरण संरक्षण के अन्तर्गत पर्यावरणवर्ष के रूप में मनाने तथा भगवान् के पर्यावरण दर्शन को जन-जन तक पहुँचाने की अपील की गयी है।
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