Book Title: Sramana 2001 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 208
________________ २०२ द्वितीय शताब्दी में वहाँ एक स्तूप एवं दो मन्दिर मौजूद थे। स्तूप अवश्य ही मन्दिर से पूर्व में बना होगा जैसाकि जिनप्रभसूरि कहते हैं कि स्तूप सुपार्श्वनाथ के समय व मन्दिर पार्श्वनाथ के काल में बना। बौद्धों ने मूर्ति पूजा कुषाण काल में प्रारम्भ की जबकि स्तूप आदि चिह्नों की पूजा कई शताब्दी पूर्व से होती रही। अवश्य ही स्तूप मन्दिरों से पूर्ववर्ती होगा। प्रोफेसर आर०सी० शर्मा का कहना है कि यह स्थल सुपार्श्वनाथ से सम्बन्धित रहा है। प्रोफेसर शर्मा भी इसका निर्माण काल आठवीं शताब्दी ईसवी पूर्व मानते हैं। स्तूप सम्भव है सुपार्श्वनाथ के समय में बना हो, जैसा कि जिनप्रभसूरि ने १४वीं शताब्दी में बतलाया है। दूसरी राय है कि यह स्तूप पार्श्वनाथ के तीर्थ में बना होगा जैसाकि सुप्रसिद्ध विद्वान् यू०पी० शाह ने आशा प्रकट की है। इस आधार पर इसका निर्माण काल आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व बैठता है। गार्गीसंहिता में लिखे द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व के यवन आक्रमणकारियों ने इस पुराने स्तूप को ध्वस्त किया होगा। इस कारण पूर्व का कोई भी शिलालेख अथवा मूर्ति अवशेष नहीं रहा। इस आक्रमण के पश्चात् जो पुनः निर्माण हुआ वह सब ११वीं शताब्दी में महमूद गजनवी के आक्रमण के समय ईसवी सन् १०१७ में ध्वस्त हुआ। इस कारण १९वीं शताब्दी के उत्खनन में द्वितीय शताब्दी ईसा पूर्व से ग्यारहवीं शताब्दी ईसा तक की सामग्री वहाँ से उपलब्ध हुई है। महमूद के मीर मुंशी अलउत्वी की कृति 'तारीख-ए-यामिनी' के अनुसार इस शहर में सुलतान ने निहायत उम्दा ढंग की बनी हुई एक इमारत देखी, जिसे स्थानीय लोगों ने मनुष्यों की रचना न बताकर देवताओं की कृति बताया। यह रचना अवश्य ही यही स्तूप रहा होगा। इसके बाद सिकन्दर लोदी (सन् १४८८ से १५१६ तक), औरंगजेब और अहमदशाह अब्दाली ने इस शहर के मन्दिरों को लूटा। इस प्रकार जिनप्रभसूरि ने महमूद गजनवी द्वारा विध्वंस के बाद एवं कवि राजमल्ल ने पुन: सिकन्दर लोदी के विध्वंस के बाद ही इन स्तूपों एवं मन्दिरों को देखा। महमूद गजनवी के बाद कंकाली टीले पर कोई विशेष मरम्मत या कलात्मक कार्य नहीं हुआ। कवि राजमल्ल के मरम्मत कार्य को भी औरंगजेब व अहमदशाह अब्दाली ने ध्वस्त किया होगा। आगे सम्भावनाएँ (१) इस स्तूप का पुनः निर्माण होने से, आठवीं शताब्दी ईसा पूर्व का ऐतिहासिक साक्ष्य दर्शनार्थ उपलब्ध होगा, जो एक अद्वितीय उपलब्धि होगी। जैन साहित्य में स्तूपों का वर्णन प्रचुर मात्रा में है, परन्तु इस स्तूप के अवशेषों को छोड़कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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