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प्रमेयकमलमार्तण्ड जैन दर्शन तथा जैन न्याय का अति प्रामाणिक एवं प्रसिद्ध ग्रन्थ है। यह आचार्य माणिक्यनन्दि द्वारा विरचित परीक्षामुख ग्रन्थ पर की गयी एक टीका है जिसमें बारह हजार श्लोक हैं। यद्यपि यह एक टीका ग्रन्थ है, परन्तु यह किसी भी मूल ग्रन्थ से किसी मामले में कम नहीं है। सचमुच यह जैनन्याय को उस तरह प्रकाशित करता है जिस तरह सूर्य जगत् को । इस ग्रन्थ के अध्ययन के बिना जैनन्याय का अध्ययन किसी भी तरह पूरा नहीं माना जा सकता; किन्तु इसका अध्ययन आसान नहीं है। यह जैनन्याय को विवेचित एवं विश्लेषित करता है; किन्तु इसे स्पष्ट करके इसका सरल रूप प्रस्तुत करना प्रो० उदयचन्द्र जी जैन जैसे विद्वान् का ही कार्य हो सकता है।
इस ग्रन्थ में प्रमाण के लक्षण, प्रमाण के भेद, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रमाणों के लक्षण, प्रमाण के फल, प्रमाणाभास, नय आदि के विशद् विश्लेषण हैं जिन्हें प्रो० उदयचन्द्र जी ने सरल एवं सुबोध भाषा में प्रस्तुत किया है। ऐसा करके उन्होंने जैन साहित्य संवर्धन में तो योगदान किया ही है साथ ही उन पाठकों का भी उपकार किया है, जो जैनदर्शन तथा जैन न्याय में रुचि रखते हैं। इसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। पुस्तक का बाह्य रूप एवं छपाई सुन्दर है।
डॉ॰ बशिष्ठनारायण सिन्हा
षड्दर्शनसमुच्चय : अनुवादक- मुनिश्री वैराग्यरति विजय जी, प्रकाशकप्रवचन प्रकाशन, ४८८, रविवार पेठ, पूना-४११००२, पृ० ९१ ।
श्रीहरिभद्रसूरिकृत षड्दर्शनसमुच्चय आकार की दृष्टि से तो छोटा है लेकिन महत्त्व की दृष्टि से बहुत बड़ा है। यह अपने महत्त्व के आधार पर ही पुस्तिका होते हुए भी ग्रन्थ की कोटि में आता है। इसमें जैन दृष्टि से षड्दर्शनों के विवेचन मिलते हैं जिसके सम्बन्ध में हरिभद्र ने स्वयं कहा है
पक्षपातो न मे वीरे, न द्वेषः कपिलादिषु ।
युक्तिमद् वचनं यस्य तस्य कार्य परिग्रह । ।
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अर्थात् मेरे मन में न तो महावीर के प्रति पक्षपात का भाव है और न कपिल आदि के प्रति द्वेषभाव, बल्कि जिनके भी वचन युक्तिसंगत हैं वे ग्रहणीय हैं।
ऐसे निष्पक्षभाव से किये गये विवेचन का अध्ययन मात्र जैन विद्वानों के लिये ही नहीं बल्कि भारतीय दर्शन का अध्ययन करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिये आवश्यक है। मुनिश्री वैराग्य विजय जी ने इस ग्रन्थ का गुजराती भाषा में अनुवाद करके, दर्शन गुजराती पाठकों का कल्याण किया है। उनका यह कार्य प्रशंसनीय है और वे बधाई के पात्र हैं। पुस्तक देखने में सुन्दर है, इसकी छपाई साफ है ।
डॉ० बशिष्ठनारायण सिन्हा
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