Book Title: Sramana 2001 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 220
________________ २१४ for this painstaking work. The out look of this book is nice and printing is clear. Dr. Bashistha Narayan Sinha सत्यकाम : रचनाकार-डॉ० मंगला प्रसाद, प्रकाशक-कल्लोल प्रकाशन, नासिरपुर, सुसुवाँही, वाराणसी-२२१००५, पृष्ठ ७३, मूल्य १५०. सत्यकाम नामक इस महाकाव्य का नामकरण उसके नायक के नाम पर आधारित है। उसे सत्य के प्रति उत्कट जिज्ञासा है जो उसके नाम से ही ज्ञात होता है। सत्य की खोज दर्शन का विषय है। अत: यह रचना दर्शन-प्रधान है। इसमें सत्यकाम को विभिन्न स्रोतों से ब्रह्म के सगुण एवं निर्गुण दोनों ही रूपों को समझाने का प्रयास हुआ है। सगुण ब्रह्म का वर्णन करते हुए कहा गया है है ब्रह्म चतुष्पद मैं एक चरण बतलाऊँ। ये चार दिशाएँ सुन्दर हैं परब्रह्म की कृतियाँ। इनकी छाया में पलती रहती कितनी संस्कृतियाँ। ब्रह्मदूत का दूसरा चरण धरती, आकाश, धुलोक, समुद्र आदि हैं। तीसरा चरण ज्योतिष्मान है, जो शुद्ध चेतना के रूप में तीन कालों में निर्विशेष रहता है। चौथा चरण आयतवान उसका मुनीन्द्र करते हैं ध्यान जिसका मन, प्राण, श्रवणेन्द्रिय नेत्रवाली कला चतुर्धा प्रतिमान उसका।।९।। न ब्रह्म की उपमा ये कलाएँ उसी अकल की ये सर्जना है।।१०।। अनादि मध्यान्तरभाव वर्जिन अनन्त शिव-गाथा गा सकोगे?।।११।। इस प्रकार कवि ने सगण ब्रह्म को व्याख्यायित करते हुए निर्गुण ब्रह्म की ओर संकेत किया है। साथ ही ब्रह्मानुभूति के लिए ब्रह्मनिष्ठा को सर्वोत्तम बताया है। कवि की दार्शनिक दृष्टि तथा काव्यगत सरसता का आनन्द दार्शनिक तथा साहित्यिक दोनों ही लेंगे, इसमें सन्देह नहीं। डॉ० बशिष्ठ नारायण सिन्हा कल्लोलिनी : रचनाकार-मंगला प्रसाद, प्रकाशक-कल्लोल प्रकाशन, नासिरपुर, सुसुवाँही, वाराणसी-२२१००५, पृष्ठ १५५, मूल्य २००.००। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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