Book Title: Sramana 2001 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 215
________________ २०९ सन्त थे; किन्तु उन्होंने अपने को सिर्फ पारलौकिकता से ही नहीं बांध रखा था। वे लोक को भी व्यवस्थित और शान्तिपूर्ण देखना चाहते थे। सम्भवतः उनकी दृष्टि में लौकिक सुव्यवस्था में ही पारलौकिक उपलब्धि का बीज अंकुरित होता है इसलिए उन्होंने रूढ़िवादिता से हटकर, विश्व में अनुकूल परिवर्तन लाने का प्रयास किया जो साधना जी के निम्नलिखित शब्दों में स्पष्ट व्यक्त होता है " आचार्य सुशील मुनि परिवर्तनवादी, प्रगतिवादी, उदारवादी और समाजसेवी साधु थे। वे किसी भी धर्म के भीतर संगठन बनाकर, बंटवारा कर, गुरुडम चलाकर, कर्मकाण्ड या उपासना पद्धति या तकनीक को धर्म नहीं बताते थे, उनके धर्म का उद्देश्य मानव और विश्व समाज का कल्याण है, जिसके लिये राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध और ईसा का प्रादुर्भाव हुआ था । " स्वयं एक आचार्य होते हुए भी आचार्य सुशील मुनि ने आचार्यों पर दोषारोपण किया है कि उन लोगों ने गुरु-परम्परा के आधार पर समाज को बांट रखा है जिसके कारण विभिन्न परम्पराओं के बीच तो विरोध है ही, एक परम्परा के भीतर भी आपसी विद्वेष देखा जाता है इसलिए उनका मानना था कि आज के युग में परम्परावाद का नहीं बल्कि यथार्थवाद का समर्थन होना चाहिए। आचार्य सुशीलकुमार जी एक जैन साधु थे; किन्तु उनका जैनधर्म भूगोल की किसी सीमा में बँध जाने वाला नहीं है, क्योंकि उन्होंने इसे मानवतावादी माना है और इस आधार पर उनका जैनधर्म विश्वव्यापी है। उनका जैनधर्म मानवतावादी होकर सिर्फ मानवों तक ही नहीं रह जाता है बल्कि समस्त प्राणियों के हित की कामना करता है, क्योंकि उनके धर्म में अहिंसावाद की प्रधानता है। अहिंसावाद, मानवतावाद, उदारतावाद आदि जनकल्याणकारी सिद्धान्त तो जैनधर्म में प्रारम्भकाल से चले आ रहे हैं, फिर तो आचार्य सुशीलकुमार जी ने ऐसा क्या किया है जिसे जैन चिन्तन, भारतीय संस्कृति एवं विश्व समाज को उनका योगदान समझा जा सकता है ? यह प्रश्न जितना ही स्वाभाविक है उतना ही इसका उत्तर भी सरल है, क्योंकि आचार्य जी ने जो भी किया हैं, वे निश्चित रूप से उनकी देन को प्रमाणित करने वाले हैं। उनमें से मुख्य बातों को इस प्रकार समझ सकते हैं (१) जैन चिन्तन को विश्व स्तर पर लाने का उनका प्रयास उसे रूढ़िवादिता से मुक्त करता है। एक जैन मुनि का विदेश में जाकर अपने विचार को खुले शब्दों में रखना अपने आपमें एक साहसपूर्ण काम है । (२) विश्व गाँव या विश्व समाज की कल्पना करके उसे एक यथार्थ रूप देने का प्रयास सम्पूर्ण मानव जाति को एक परिवार में लाने की बात है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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