________________
१८८ से ग्रन्थागार भूमिपूजन समारोह का आयोजन किया गया। इस समारोह में दिल्ली प्रान्त की मुख्यमन्त्री माननीया श्रीमती शीला दीक्षित मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं।
आचार्यश्री सोहनलाल जी म० का ६७वां पुण्यस्मरण समारोह सम्पन्न
अमृतसर ३० अप्रैल : जिनशासन में आचार्यपद की महती गरिमा है। आचार्य सम्यक् आचार का स्वयं पालन करता है तथा चतुर्विध संघ से पालन करवाता है। उसका ज्ञान व आचरण एक समान होता है, कथनी और करनी में विभिन्नता नहीं होती। ज्ञान व चारित्र का धनी महापुरुष आचार्य ही वर्तमान में तीर्थङ्कर तुल्य पूजनीय होता है। तीर्थङ्कर महावीर की इस गौरवशाली आचार्य-परम्परा में कलिकाल सर्वज्ञ, ज्योतिषमार्तण्ड प्रधानाचार्य श्री सोहनलाल जी म० का विशिष्ट स्थान है। तत्कालीन सम्पूर्ण स्थानकवासी जैन-परम्परा के सभी आचार्यों ने अजमेर सम्मेलन में उन्हें अपना प्रधानाचार्य स्वीकार करके उनके अद्भुत ज्ञान व शील का अभिनन्दन करके स्वयं को धन्य किया था। वे दीर्घ तपस्वी, गम्भीर ज्ञानी व कुशल अनुशास्ता थे। अनुशासन में वह वज्र के समान कठोर थे। प्रतिकूलताओं व विरोधों के तूफानों में भी उन्होंने अपनी शान्ति को भंग नहीं होने दिया। वे प्रथम जैनाचार्य थे जिन्होंने जैनागमों के आधार पर जैन पञ्चांग का निर्माण किया था। उनका शाश्वत सन्देश था- "मनुष्य को न तो पानी के समान, न ही पत्थर के समान होना चाहिए, उसे तो बीकानेरी मिश्री की भांति होना चाहिए। मिश्री किसी पर फेंकी जाए तो चोट पहुंचाती है और मुख में डाली जाए तो अनोखी मिठास प्रदान करती है। इसी प्रकार मनुष्य को सद्गुणों के प्रति विनम्र तथा दुर्गुणों के प्रति कठोर होना चाहिए।" ये विचार जैनसाध्वी डॉ० अर्चना जी म० ने पूज्य सोहनलाल जी म० के ६७वें पुण्य स्मरण दिवस पर विशाल धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किये।
प्रवचन दिवाकर श्री सुधीर मुनि जी म० ने कहा- “दीपक जलता हुआ ही प्रकाश करता है किन्तु बुझते ही अन्धेरा कर देता है। सूरज जब तक आकाश में उदीयमान है तभी तक अपने आलोक से उजियारा करता है, परन्तु अस्त होते ही जगत् में अंधियारा व्याप्त कर देता है, परन्तु सन्त ऐसी जिन्दगी जी लेता है कि आयुष्य का दीपक बुझ भी जाए, जीवन का सूर्य अस्त भी हो जाए पर उसके ज्ञान व अनुभव का तथा सत्कर्मों का उजियारा बना रहता है। उनकी महती उपलब्धियों से प्रेरणाएं पाकर लोग जहां स्वयं के जीवन को प्रशस्त बनाते हैं वहीं अपने सम्पर्क में आने वालों को भी अनुभवी व तेजस्वी बना देते हैं। आचार्यश्री सोहनलाल जी म० के शासनकाल में एक से एक उत्कृष्ट ज्ञानी-ध्यानी व संयमी महापुरुषों की सम्पदा से चतुर्विध संघ गौरवान्वित था। जिसने भी उनकी चरण-शरण को स्वीकार किया उसके आत्मिक सौन्दर्य को उन्होंने प्रस्फुटित कर दिया। सौभाग्यशाली वह आत्माएं रही होंगी जिन्हें उनका मंगल व वरदानदायक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org