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१५१ कल्याणमन्दिरस्तोत्र का विस्तृत विवेचन है। चतुर्थ खण्ड में सिद्धसेन की कृतियों में सन्मतितर्क का क्या स्थान है, इसकी विशद विवेचना की गयी है। पञ्चम खण्ड में उनके काल का निर्धारण किया गया है तथा छठे खण्ड में सिद्धसेन के दार्शनिक अवदान के अन्तर्गत दर्शन और ज्ञान के युगपत् भाव का प्रतिपादन पक्ष और विपक्ष, नयों का पुनर्वर्गीकरण, ज्ञान और क्रिया के एकान्तिक आग्रह का निराकरण, अनेकान्त व्यवस्थापन, जैन दर्शन को सिद्धसेन दिवाकर का अवदान आदि विषयों की विस्तृत चर्चा की गयी है। तृतीय अध्याय : सन्मतितर्क का सामान्य परिचय
_तृतीय अध्याय में पाँच खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में सन्मतितर्क की भाषा, गाथा संख्या, रचना काल की चर्चा प्रस्तुत की गयी है। द्वितीय खण्ड में सन्मतितर्क की विषय-वस्तु का विवेचन किया गया है। तृतीय खण्ड में सन्मतितर्क पर पूर्ववर्ती दार्शनिकों का क्या प्रभाव है, इसकी व्याख्या की गयी है। चतुर्थ खण्ड में सन्मतितर्क पर उत्तरवर्ती दार्शनिकों का क्या प्रभाव है, इसका विशद् विवेचन किया गया है। पञ्चम खण्ड में सन्मतितर्क के महत्त्व और मूल्यांकन का विवेचन किया गया है। चतुर्थ अध्याय : सन्मतितर्क में विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों का खण्डन
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के चतुर्थ अध्याय में तीन खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में सन्मतितर्ककार द्वारा औपनिषदिक अद्वैतवाद का खण्डन, द्वितीय खण्ड में बौद्धों के क्षण-भंगवाद का खण्डन तथा तृतीय खण्ड में केवली के दर्शन और ज्ञान के क्रमवाद का खण्डन और उसकी विशद विवेचना की गयी है। पञ्चम अध्याय : सन्मतितर्क की दार्शनिक अवधारणा
पाँचवें अध्याय में चार खण्ड हैं। प्रथम खण्ड में द्रव्य, गुण-पर्याय के सम्बन्ध और उनके भेद-अभेद की चर्चा प्रस्तुत की गयी है। द्वितीय खण्ड में अनेकान्तवाद की स्थापना का विवेचन किया गया है। तृतीय खण्ड में नय योजना तथा चतुर्थ खण्ड में सन्मतितर्क में सप्तभंगी की विवेचना की गयी है। षष्ठ अध्याय : उपसंहार
प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध का षष्ठ अध्याय उपसंहार है जिसमें पाँचों अध्यायों का संक्षिप्त सार परिचय प्रस्तुत करते हुए हमने अपने शोध निष्कर्षों का प्रतिस्थापन किया है।
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