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आधुनिक विश्व में अहिंसा की प्रासंगिकता
दुलीचन्द जैन
अहिंसा धर्म का आधार है। इसी के द्वारा समाज का सुचारु रूप से सञ्चालन सम्भव है। यही वह गुण है जो प्रत्येक जीव को सम्मान प्रदान करता है। दया एवं करुणा की अभिव्यक्ति इसी जीवन मूल्य में होती है । इसका व्यवहार विश्व में शान्ति एवं सौहार्द लाता है।
भगवान् महावीर ने कहा कि धर्म उत्कृष्ट मंगल है | अहिंसा, संयम और तप उसके लक्षण हैं। जिसका मन सदा धर्म में रमता रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं। उनके ही शब्दों में, “किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करनी चाहिए, यही ज्ञानियों के ज्ञान का सार है। अहिंसा, समता, समस्त जीवों के प्रति आत्मवत् भाव यही शाश्वत धर्म है।” उन्होंने जीवों के प्रति समादर के भाव पर जोर देते हुए कहा, "सभी प्राणियों को अपनी-अपनी आयु (जीवन) प्रिय है। सुख अनुकूल है, दुःख प्रतिकूल है। वध सबको अप्रिय है, जीवन सबको प्रिय है। अतः किसी भी जीव को त्रास नहीं पहुँचाना चाहिए, किसी के प्रति वैर और विरोध का भाव नहीं रखना चाहिए ।"
आज का मनुष्य अहिंसा के उपर्युक्त मूल्यों को भूल गया है। परिणामस्वरूप आज विश्व में हिंसा, अशान्ति तनाव, जीवन-मूल्यों का अवमूल्यन, सौहार्द का अभाव एवं आतंक बढ़ता ही जा रहा है। आइए हम उन उपायों पर विचार करें जो मानवता को वास्तविक सुख प्रदान करने में समर्थ हो सकते हैं।
मनुष्य : क्या मात्र एक आर्थिक यन्त्र है?
आधुनिक सभ्यता, जो पूर्णत: भौतिकवाद पर आधारित है, ने मनुष्य के व्यक्तित्व को संकुचित करके उसे मात्र एक आर्थिक यन्त्र बना दिया है। आधुनिक युग में मनुष्य ने बहुत सारी विचारधाराओं का सहारा लिया ताकि वह पूर्ण समृद्ध एवं सुखी बन सके। लेकिन क्या उसे सुख एवं आनन्द प्राप्त हुआ ? नहीं, आज मनुष्य को समृद्धि तो प्राप्त हुई है, लेकिन वह मानसिक शान्ति प्राप्त नहीं कर सका । समृद्धि भी कुछ चुने हुए वर्ग के लोगों को मिली। कुछ वर्षों पहले साम्यवाद का बहुत बड़ा प्रभाव था और लगता था कि यह सारे विश्व को लाल रंग में रंग देगा। इसके प्रचारकों ने कहा कि हम गरीब
३६, शम्बुदास स्ट्रीट, चेन्नई - ६००००१.
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