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अमेरिका में २५ प्रतिशत स्त्रियाँ अपने पतियों से अधिक आमदनी प्राप्त कर लेती हैं। लगभग ६ प्रतिशत पुरुष घरेलू काम-काज करते हैं तथा उनकी पत्नियाँ
कमायी करती हैं। विद्यालयों में हिंसा
अमेरिका के विद्यालय- परिसरों में हिंसा की घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही हैं। अप्रैल १९९९ में लिटलटन, कोलोराडो में तब यह चरम सीमा पर पहुँची, जब कोलम्बिने हाईस्कूल के दो विद्यार्थियों ने अपनी कक्षा के १३ सहपाठियों को गोलियों से उड़ा कर स्वयं अपने जीवन को भी समाप्त कर दिया। नेशनल एसोसियेशन ऑफ एटोर्नी जनरल ने बताया कि पिछले सात वर्षों में कम से कम १४ विद्यालयों में गोली चलाकर अपने सहपाठियों को मार डालने की घटनाएँ घटित हो चुकी हैं। १४ मार्च २००० को हज़ारों अमरीकी नागरिकों ने वाशिंगटन में एक जुलूस निकाला तथा प्रस्ताव पारित किया कि अमरीकी कांग्रेस बन्दूक नियन्त्रण कानून को सख्त बनाये ताकि हिंसक घटनाओं की संख्या कम हो। वर्तमान समाचारों के अनुसार अमेरिका में प्रति वर्ष ३०,००० व्यक्ति गोलियों के शिकार होते हैं।
श्री ई०एफ० शूमेकर ने कहा कि अमेरिका, जिसके पास विश्व की मात्र ६ प्रतिशत आबादी है, विश्व के ३० प्रतिशत संसाधनों का उपयोग कर लेता है। परिणामस्वरूप विश्व की एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी, अभाव एवं शोषण से अभिशप्त है। अत: यह सिद्ध होता है कि आर्थिक विकास मात्र मनुष्य के जीवन के स्तर को ऊँचा उठाने में समर्थ नहीं है।
प्रकृति के प्रति भ्रामक धारणा
शताब्दियों से पाश्चात्य जगत् में यह एक धारणा बनी कि मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और यह सम्पूर्ण सृष्टि उसी के उपभोग के लिये बनी है। फ्रांसिस बेकोन ने ४०० वर्ष पूर्व लिखा कि यह सारी सृष्टि मनुष्य के लिये ही बनी है, अन्य प्राणियों के लिये नहीं। इस धारणा का परिणाम यह हुआ कि प्रकृति एवं उसके संसाधनों का भयंकर शोषण किया गया। विज्ञान ने भी इसी धारणा को बढ़ावा दिया और कहा कि पशु-पक्षी, पेड़-पौधों में प्राण नहीं है। यह भी बताया गया कि प्रकृति का भण्डार असीम है और वह मात्र मनुष्य को सुखी करने के लिये है। वैज्ञानिक उपकरणों की सहायता से प्रकृति का अधिक से अधिक शोषण कर मनुष्य के जीवन को सुखी बनाया जा सकता है। इस धारणा के कारण प्रकृति का जो निर्मम शोषण हो रहा है और उसके जो भयावह परिणाम सामने आ रहे हैं, उसकी ओर कम लोगों का ध्यान गया है। एनाल्ड टोयनबी ने सन् १९७२ में लन्दन ओब्जर्वर में लिखा, “हम लोग परेशान हैं क्योंकि हमने अधिकतम भौतिक साधनों को प्राप्त करने के लिये अपनी आत्मा की भावनाओं को
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