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भक्ति, ज्ञान और योगमार्ग के साथ-साथ शिवोहम्, 'दशक्रियाणी', 'शक्तिपात' दीक्षा आदि का भी मोक्ष के साधन अथवा उपाय के रूप में विवेचन किया गया है।
षष्ठ अध्याय में दोनों दर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है तथा दोनों दर्शनों की साधना पद्धतियों में समानता और विषमता का यहाँ विवेचन किया गया है। जैन दर्शन निवृत्तिमार्गी है और शैव दर्शन प्रवृत्तिमार्गी अतः दोनों की साधना पद्धतियों में विषमता स्वाभाविक है जिसकी तुलना भारतीय विचारधारा के अन्तर्गत की गयी है ।
सप्तम और अन्तिम अध्याय उपसंहार है, जिसमें शोध-प्रबन्ध के उपर्युक्त अध्यायों में विवेचित प्रमुख बिन्दुओं की समीक्षा प्रस्तुत है ।
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