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भारतीय भाषाओं का प्रथम व्यंग्य-उपन्यास :
आचार्य हरिभद्रसूरि का 'धूर्ताख्यान'
डॉ० श्यामसुन्दर घोष सन् १९७० ई० में ही मेरे मन में यह बात आयी थी कि मैं यह जान सकूँ, और हिन्दी व्यंग्य-प्रेमियों को यह बता सकूँ, कि हिन्दी का प्रथम व्यंग्य-उपन्यास कौन-सा और किसका लिखा है? तभी मैंने इस विषय को एक प्रश्नावली तैयार की और उसे अनेक व्यंग्यकारों और मित्र-पाठकों को इस अपेक्षा के साथ भेजा कि वे इस सम्बन्ध में छानबीन करेंगे और अपने निष्कर्षों से साहित्य-जगत् को परिचित करायेंगे।
सन् १९७२ ई० में 'प्रतिमान' पत्रिका का व्यंग्य-उपन्यास-अंक प्रकाशित हुआ था, जिसके अन्त में हिन्दी का प्रथम व्यंग्य-उपन्यास विषयक प्रश्नावली और विभिन्न लेखकों द्वारा दिये गये उत्तर प्रकाशित किये गये थे। तब अलग-अलग लेखकों ने. हिन्दी के प्रथम व्यंग्य-उपन्यास के रूप में, अलग-अलग नाम गिनाये थे। छापने को तो मैंने वह प्रश्नोत्तरी छाप ही दी थी, पर मेरी शंकाओं का समाधान नहीं हुआ था।
उसके बाद भी इस विषय पर खोज-रत रहकर अन्त में मैंने सन् १९७३ ई० में काशी की नागरीप्रचारिणी-पत्रिका में प्रकाशित महामहोपाध्याय पण्डित रामावतार शर्माकृत 'मुद्गरानन्द-चरितावली' को हिन्दी का पहला व्यंग्य-उपन्यास माना और इस सम्बन्ध में एक खोजपरक लेख लिखा, जो पीछे 'हिन्दी का प्रथम व्यंग्य-उपन्यास 'मुद्गरानन्द-चरितावली की भूमिका बना। मैंने हिन्दी-पाठकों के लिये 'मुद्गरानन्द-चरितावली' का सम्पादित पाठ पुन: प्रकाशनार्थ तैयार किया।
तभी मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि भारतीय भाषाओं का प्रथम व्यंग्य-उपन्यास कौन-सा, किसका लिखा या कहाँ है, इसे जाना जाय। इसका जबाब मुझे सन् १९८० ई० में बिहार-राष्ट्रभाषा-परिषद्, पटना की शोध-त्रैमासिकी ‘परिषद्-पत्रिका' के अक्टूबर १९८० ई० के अंक (पूर्णाङ्क ७९) में प्रकाशित प्राकृत-कथाकोविद रचनाकार आचार्य हरिभद्रसूरि के प्रसिद्ध व्यंग्याख्यान 'धूर्ताख्यान' ('धुत्तक्खाणं') में मिल गया, जिसे अनूदित कर पत्रिका के सम्पादक आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने प्रकाशित किया था। *. ऋतंवरा, गोड्डा (झारखण्ड), पिन : ८१४१३३.
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