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वहां के लोग मिट्टी के बर्तन अन्य स्थाने से लाते हैं। वहां नागमूर्तियुक्त धर्मनाथ स्वामी की प्रतिमा सम्यग्दृष्टि यात्रियों द्वारा पूजी जाती है और जैनेतर लोग वर्षा न होने पर हजारों घड़े दूध से भगवान् का अभिषेक करते हैं जिससे उसी समय प्रचुर मेघवृष्टि हो जाती है। यह घटना ७०० वर्ष पूर्व लिखित है।
_ 'प्रतिष्ठानपुर-कल्प' के अनुसार वहां दो विदेशी ब्राह्मण अपनी विधवा बहन के साथ आकर किसी कुंभार की शाला में रहने लगे। एक दिन उनकी बहन पानी के लिये गोदावरी नदी में गई तो उसके अद्वितीय सौन्दर्य को देखकर कामातुर अन्तर्हद निवासी शेषनाग ने मनुष्य देहधारण कर साथ संभोग-केलि की। उसके सप्तधातुरहित होने पर भी भवितव्यता वश दिव्यशक्ति से शुक्र पुद्गल संचार द्वारा व गर्भवती हो गई। उसने गर्भकाल पूर्ण होने पर सातवाहन को जन्म दिया, वही बड़ा होने पर नागराज के सान्निध्य से प्रतिष्ठानपुर का राजा सातवाहन हुआ।
जैनेतर साहित्य में भी नागलोक की प्रचुर कहानियां मिलती हैं। रामबाबू नीरव ने कथालोक, जनवरी ९५ के अंक में "श्रीकृष्ण और आशिका' शीर्षक कथा प्रसंग प्रकाशित किया है जिसमें प्रभास क्षेत्र के संदीपनी आश्रम में श्रीकृष्ण, बलराम और उद्धव के अध्ययन पूर्ण करने के पश्चात् उनकी उदासी का कारण पूछने पर यह ज्ञात कर कि उनका पुत्र श्वेतकेतु समुद्रीदस्यु पंचजन्य द्वारा अपहृत होने से वे दु:खी हैं। श्रीकृष्ण ने पुत्र को छुड़ा लाने का संकल्प किया और वे तीनों चल पड़े। समुद्र में वे जलयान द्वारा घूमते रहते और आर्यों को पकड़ कर सताने और उन्हें बेच देने वाले व्यवसायी शक्तिशाली असुर से उसके वाहन की खोज कर जा भिड़े और उसे मार कर पाताल लोक में जाकर नागमाता और यमराज के अधिकार से उन्हें विक्रीत श्वेतकेतु को तथा दस्यु के अधिकृत बहुत से मनुष्यों को छुड़ा लाये। इस विस्तृत वार्ता में नागकन्याओं का तथा नागमाता के क्रूर शासन का वर्णन है। आशिका उन्हीं की पुत्री थी।
__भगवान् श्रीकृष्ण शलाकापुरुष/वासुदेव थे। उनके द्वारा कालियदमन की कथा सर्वत्र प्रसिद्ध है।
भुवनपति/नागकुमार आदि देवों के संबन्ध में ऊपर कुछ बताया जा चुका है, जैन कथानुयोग में और भी बहुत से ज्ञातव्य अनुशीलन करने से प्राप्त हो सकते हैं। श्री शान्तिसूरिजी ने जीव-विचारप्रकरण में निम्न गाथा में संक्षिप्त परिचय दिया है।
चउपय उरपरि सप्पा भुयपरिसप्पाय थलयरा तिविहा।
गो सप्प नउल पमुह, बोधव्वा ते समासेणं। स्थलचर (जमीन पर चलने वाले) त्रिर्यञ्च पंचेन्द्रिय जीव तीन प्रकार के होते हैं। चार पैरों वाले, छाती के बल पर चलने वाले तथा भुजाओं से चलने वाले संक्षेपन गोह, सांप, नकुल आदि जानना।
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