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(१) ॐ अनन्ताय नमः, (२) ॐ वासुक्याय नमः, (३) ॐ तक्षकाय नमः, (४) ॐ कोटिकाय नमः, (५) ॐ पद्माय नमः, (६) ॐ महापद्माय नमः, (७) ऊँ शंखपालयय नमः, (८) ऊँ कुलिकाय नमः।
शास्त्रों में साँपों के १० कुल बताए हैं उनमें इन ८ नामों के साथ ९ विजय और १० जय के नाम हैं। भगवान् पार्श्वनाथ के नाम से पवित्र मन्त्र का जाप करने से सभी प्रकार के साँपों का विष नाश होता है। ऊपर दो मंत्रों का उल्लेख किया ही है।
लीबड़ी (गुजरात) में दो ब्राह्मण बन्धु रहते थे जिन्हें सर्प विष उतारने की विद्या प्राप्त थी। विधि यह थी कि 'पानरे पानरे' कह कर कपड़े के गांठ लगा देते थे, अत: वे पानरे महाराज के नाम से प्रसिद्ध हो गए। उन्होंने दस हजार से अधिक सर्प विष उतारे थे। शतावधानी श्री धीरजलाल टोकरसी शाह उनसे मिले थे।
श्री जिनकृपाचन्द्रसूरिजी महाराज ने कहा था कि एक बुढिया के हंस नामक पुत्र को जंगल में किसी साँप ने काट खाया, जिससे विष व्याप्त होकर वह बेहोश हो गया। उसकी माँ रात भर "रे हंस रे हंस" नाम से विलाप करती रही। प्रात:काल जब गारुड़िक ने देखा तो वह निर्विष हो गया था। उसने पूछा तुमने किसी मंन्त्रवादी या औषधि का प्रयोग किया? ऐसे ही तो विष उतरता नहीं। बुढिया ने कहा, मैं र हंस, रे हंस' कहते हुए रात भर विलाप करती रही। गारुड़िक ने कहा, यह विष उतारने का मंत्र है।
___श्री जिनवल्लभसूरि जी महाराज हाँसी के श्रावण के पुत्र थे। ये चैत्यवासी आचार्य जिनेश्वरसूरि के मठ में रहकर विद्याध्ययन कर रहे थे। पिता का देहावसान हो जाने से माता ने उसका लालन-पालन किया था। बुद्धि में वे बड़े तेज थे। एक बार अध्ययन के पश्चात् घर पर जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें एक टिप्पनक दिखाई दिया। उसमें सर्पाकर्षणी तथा सर्पमोक्षिनी नामक विद्यायें थीं। उसमें लिखे गये वर्णन के अनुसार जिनवल्लभ ने पहली विद्या के मन्त्र का उच्चारण किया। उसके प्रभाव से सर्वदिशाओं से साँप ही साँप आने लगे। विद्या का प्रभाव ज्ञात कर वे तनिक भी नहीं घबराये। उस समय सर्पमोक्षिणी दूसरी विद्या का यथाविधि उच्चारण कर उन आये हुए सर्पो को वैसे ही लौटा दिया।
विविधतीर्थकल्प के 'रत्नावाहपुरकल्प' में लिखा है कि वहां एक कुंभार का पुत्र मानवदेहधारी नागराज के साथ खेला करता था। नागराज उसे प्रतिदिन जाते समय अपनी पूंछ से सोने का ४ अंगुल हिस्सा काटने देता था। उसके पिता ने लोभवश ज्यादा पूंछ काटकर लाने के लिये मजबूर किया और उसने जब इनकार किया तो पिता ने बिल में प्रविष्ट होकर जाते नागकुमार का आधा शरीर काट डाला। नागकुमार ने क्रुद्ध होकर पिता पुत्र दोनों को फटकारते हुए काट खाया और तीव्र क्रोधावेश में समस्त कुंभारों के वंश का नाश कर दिया। उसके बाद वहां कोई भी कुंभार का काम करने वाला रहता नहीं।
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