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जैनधर्म, संस्कृति और कला के विकास में गंग, राष्ट्रकूट और चालुक्य राजवंशों का योगदान
प्रो० भागचन्द्र जैन 'भास्कर
जैनधर्म, संस्कृति और कला के विकास में गंग, राष्ट्रकूट और चालुक्य राजवंशों का विशेष योगदान रहा है। दक्षिणापथ (नर्मदा नदी के दक्षिणवर्ती भू-भाग) पर कर्नाटक प्रदेश में कटवप्र पर्वत पर स्थित श्रवणबेलगोल क्षेत्र के विकास में गंगवंशीय नरेशों का विशेष योगदान रहा है। अनुश्रुति के अनुसार इस वंशका सम्बन्ध तीर्थङ्कर आदिनाथ के इक्ष्वाकुवंशीय गंगेय से रहा है जिसकी वंश-परम्परा में जन्मे पद्मनाथ के पुत्र दद्दिग और माधव क्रोंगुणिवर्म प्रथम (१८९-२५० ई०) ने आचार्य सिंहनन्दि की देखरेख में ९६००० संज्ञक गंगवाडि (मैसूर के दक्षिणी भाग में स्थित गंगडिकार या गंगवाडिकार) को अपना राज्य बनाया। दद्दिग तो शासन-निर्माण-काल में ही चल बसा।' अत: माधव को ही इस राज्य का प्रथम वास्तविक नरेश कहा जा सकता है।
गंगराज्य के निर्माण में आचार्य सिंहनन्दि की भूमिका निःसन्देह महत्त्वपूर्ण रही है। श्रवणबेलगोल के समीपस्थ हल्लिग्राम से प्राप्त शिलालेख में उन्हें गंगराज्य का निर्माता कहा गया है (जैन शिलालेख संग्रह, भाग १, क्रमांक ४८६, पृ० ३८२)। पार्श्वनाथ वसदि में एक स्तम्भ पर उत्कीर्ण शिलालेख भी इस तथ्य की पुष्टि करता है (वही, क्रम ५४, पद्य ९)। मैसूर राज्य के अन्तर्गत कल्लूरगुड्ड के सिद्धेश्वर मन्दिर से प्राप्त शिलालेख (११२२ ई०) में गंगराज्य की स्थापना का श्रेय आचार्य सिंहनन्दि को ही दिया गया है। उज्जैन के नरेश महीपाल के आक्रमण से त्रस्त होकर पद्मनाभ ने अपने दोनों पत्र दद्दिग और माधव को दक्षिण की ओर भेज दिया। वहाँ पेरूर में उनकी भेंट आचार्य सिंहनन्दि से हुई। सिंहनन्दि ने उन्हें पूरा सहयोग दिया। दोनों राजकुमारों ने उनके निर्देशानुसार पद्मावती देवी की भक्ति की। उसने उन्हें प्रकट होकर तलवार
और राज्य प्रदान किया। तदनन्तर सिंहनन्दि ने उन्हें इस प्रकार शिक्षा दी_ 'यदि तुम अपने वचन को पूरा न करोगे, या जिन शासन को सहायता न दोगे, दूसरों की स्त्रियों का यदि अपहरण करोगे, मद्य-मांस का सेवन करोगे या नीचों की *. पर्व-निदेशक. पार्श्वनाथ विद्यापीठ.
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