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११७ राचमल्ल के बाद उसके अनुज गोविन्द का पुत्र राक्कसगंग (९८५ ई०) राजा हुआ। बाहुबली बसति (श्रवणबेलगोल) के उत्कीर्ण अभिलेख में उल्लिखित रक्कसमणि (गंगवज्र) राक्कसगंग ही होना चाहिए जिसके वोयिग नामक एक वीर योद्धा ने राष्ट्रकूट नरेश वद्देग और कोषेयगंग के विरुद्ध युद्ध करते हुए अपने प्राण विसर्जित कर दिये। इसका राज्यकाल बहुत कम प्रतीत होता है। इसके गुरु आचार्य विजयदेव थे। जैन कवि विजयदेव नागवर्म इसी राजा के आश्रित थे। शिलालेख (श्रवणबेलगोल) नं० २३५ (१५०) में शायद इसी नागवर्म का उल्लेख है। राक्कसगंग के ही राज्यकाल में १००४ ई० में चोलों ने आक्रमण करके गंगवाड़ी तथा तलकाड को अपने अधीन कर लिया। यहीं से गंगवंश का पतन प्रारम्भ हो गया।
राक्कसगंग के बाद भी, लगता है, गंगराज्य एक उपराज्य के रूप में चलता रहा। इस उपराज्य के राजा नीतिमार्ग 'तृतीय' राचमल्ल और फिर राक्कसगंग 'द्वितीय' राजा हए। इनके आचार्य क्रमश: वज्रमणि और अनन्तवीर्य सिद्धान्तदेव थे। चालक्यों से उन्होंने पारिवारिक सम्बन्ध स्थापित किया। राक्कसगंग 'द्वितीय' की पुत्री का सम्बन्ध चालुक्य नरेश सोमेश्वर से हुआ। इसके बाद राक्कसगंग का छोटा भाई कलिगंग राजा हुआ। सम्भवत: उसी गंगराजा ने १११६ ई० में मैसूर प्रदेश से चोलों का निष्कासन कर अपने स्वामी होयसल नरेश विष्णुवर्धन का साम्राज्य स्थापित किया था।
विष्णुवर्धन के आठ जैन सेनापति थे- गंगराज, बोप्प, पुणिस, बलदेव, मरियन, भरत, ऐच और विष्णु। इनमें गंगराज को प्रमुख कहा जाता है। उसके माता-पिता भी परम जिनभक्त थे। चामुण्डराय बसदि के दक्षिण की ओर स्थित मण्डप में द्वितीय स्तम्भ पर उत्कीर्ण ११२० ई० के शिलालेख (क्र० ४४१) में 'मार' और 'माकणब्बे के सुपुत्र 'एचि' व 'एचिगाङ्क' की भार्या 'पोचिकब्बे' की धर्मपरायणता और अन्त में संन्यास-विधि से स्वर्गारोहण का उल्लेख है। 'पोचिकब्बे' ने अनेक धार्मिक कार्य किये। उन्होंने श्रवणबेलगोल में अनेक मन्दिर बनवाये। शक सं० १०४३, आषाढ़ सुदी ५ सोमवार को उस धर्मवती महिला का स्वर्गवास हो जाने पर उसके प्रतापी पुत्र महासामन्ताधिपति, महाप्रचण्ड दण्डनायक विष्णुवर्धन महाराज के मन्त्री गंगराज ने अपनी माता की स्मृति में इस निषद्या का निर्माण कराया। इसी लेख में गंगराज के कुछ विरुद् उल्लिखित हैं, जैसे- महासामन्ताधिपति, महाप्रचण्डनायक, वैरिभयदायक, गोत्रपवित्र, बुधजनमित्र, श्रीजैनधर्मामृताम्बुधिप्रवर्द्धन सुधाकर, सम्यक्त्वरत्नाकर, आहाराभयभैषज्यशास्त्रदानविनोद, भव्यजनहृदयप्रमोद, विष्णुवर्द्धन- भूपालहोसलमहाराजराज्याभिषेकपूर्णकुम्भ, धर्महम्योद्धरणमूलस्तम्भ आदि। इन विरुदों से गंगराज के विराट् व्यक्तित्व का पता चलता है।
गंगराज के कार्यकलापों का वर्णन करने वाले दो और शिलालेख श्रवणबेलगोल में उपलब्ध होते हैं, प्रथम शासनबस्ति (चन्द्रगिरि) के सामने एक शिला पर (नं०
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